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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जयमाला
(दोहा)
तीर्थंकर नवमें प्रभो ! अद्भुत महिमावंत। शाश्वत् धर्म बताइया, रहे सदा जयवन्त ।
(छन्द-पद्धरी) हे पुष्पदंत ! हे सुविधिनाथ !! दर्शन पाकर मैं हूँ सनाथ । जिनराज भजूं निजभाव सजू, परमानंदमय चिद्रूप भनँ। हे तेजपुंज हे धर्ममूर्ति ! हे ज्ञानपुंज चैतन्यमूर्ति । मंगलमय लोकोत्तम स्वरूप, भविजन को तुम ही शरणरूप॥ नाशे कर्माश्रित सब विभाव, प्रगटे स्वाश्रित आतम स्वभाव । तुम दिव्यध्वनि सुन जगेज्ञान, आतम-अनात्म की हो पिछान ॥ पर्यायदृष्टि छूटे जिनन्द, प्रगटे अनुभव रस दुख निकन्द। दुःख कारण रागादिक दिखाय, पुरुषार्थ तिन्हें नाशन जगाय॥ वैराग्य भावना सहज होय, क्षण-क्षण में निज शुद्धात्म जोय। निर्ग्रन्थ मार्ग में बढ़े जाय, तुम सम अक्षय पदवी सु पाय ।। यों मुक्तिमार्ग के निमित्त आप, भव्यों के नाशो प्रभु संताप। हे परम धरम दातार देव, चरणों में शीश नमें स्वयमेव ।। जो पूजे सो जगपूज्य होय, आपद ताको आवे न कोय। तुम ढिग वांछा ही प्रभु नशाय, निज में ही अद्भुत तृप्ति पाय॥ इन्द्रादिक पूजें चरण आन, अद्भुत अतिशय जिनवर महान।
ऐसी प्रभुता मैं भी सु पाय, तिष्यूँ जिनेश तुम पास आय॥ ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य नि. स्वाहा।
(सोरठा) पुष्पदंत भगवान, तीन लोक चूड़ामणि। होय सकल कल्याण, जिन पूजा परसादते॥
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
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