________________
128
आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पुष्पदंत जिनराज करूँ गुणगान मैं,
होय प्रतिष्ठित सहज ज्ञान ही ज्ञान में। ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा।
आर्त-रौद्र तज आत्मध्यान धारूँ अहो।
जरें कर्ममल निजगुण विस्तारूँ प्रभो॥पुष्पदंत..॥ ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं नि. स्वाहा।
पुण्य-पाप फल सकल जिनेश्वर त्यागकर।
__ पाऊँ जिनवर मुक्तिफल आनन्दकर ।पुष्पदंत.॥ ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुद्ध भावमय अर्घ्य धरूँ आनन्द से।
पद अनर्घ्य हो बयूँ कर्म के फन्द से।पुष्पदंत..॥ ॐ ह्रीं श्री पुष्पदंतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं नि. स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्घ्य
(चौपाई) नवमी फागुन वदी सुहाई, गर्भ कल्याण भयो सुखदाई।
सेवे मात देवि सुखकारी, पूजूं जिनवर मंगलकारी। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्य नि. ।
मगसिर सुदि एकम दिन आया, इन्द्र जन्मकल्याण मनाया।
उत्सव नाना भाँति रचाई, मैं भी पूर्जे त्रिभुवन राई॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लप्रतिपदायां जन्ममंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अयं नि.।
इक दिन उल्कापात हुआ था, अन्तर में वैराग्य हुआ था। _ भाय भावना दीक्षा धारी, मगसिर सुदि एकम् सुखकारी ॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लप्रतिपदायां तपोमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अयं नि.।
आत्मध्यान प्रभु ऐसा धारा, नाशे घाति कर्म दुखकारा।
कार्तिक कृष्णा द्वितीया स्वामी, धर्मतीर्थ प्रकटा अभिरामी॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णद्वितीयायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अयं नि.।
सुप्रभ टोंक सम्मेद महाना, आप पधारे अविचल थाना ।
भादों सुदि अष्टमि सुखकारा, पूजत होवे हर्ष अपारा ।। ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लअष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अयं नि.।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org