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________________ आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह समाज में अब पूजन-पाठ-भजन आदि के संकलनों की कमी नहीं है। फिर भी अधिकतम उपयोगी संकलन का स्थान रिक्त ही है; जिसमें स्तरीय रचनायें हों और पृष्ठ संख्या भी इतनी अधिक न हो कि उन्हें उठाना-धरना कठिन हो जाए - ऐसे संकलन के प्रकाशन की आवश्यकता सदैव महसूस होती रही। अभी-अभी श्री कुन्दकुन्द कहान स्मृति प्रकाशन ट्रस्ट विदिशा ने अपनी 'अध्यात्म पूजांजलि' में पण्डितजी की अधिकाधिक रचनाओं को प्रकाशित कर समाज को यह अमूल्य निधि उपलब्ध कराई है। प्रस्तुत संकलन में मात्र पण्डितजी साहब की रचनाओं का ही समावेश किया गया है, ताकि पृष्ठ संख्या सीमित हो सके। अपवाद के रूप में कुछ विशिष्ट उपयोगी और लोकप्रिय रचनायें अन्तिम खण्ड में प्रकाशित की गई हैं। शेष रचनायें अन्य संकलनों में उपलब्ध हैं ही। पण्डितजी साहब द्वारा रचित चौबीस तीर्थंकर विधान से इस संकलन की उपयोगिता बहुत बढ़ गई है। विधान के माध्यम से ५-६ दिन में ही सभी पूजनों का रसास्वादन किया जा सकेगा। कुछ महत्वपूर्ण दर्शनस्तुतियाँ तथा आध्यात्मिक पाठ भी इस संकलन की उपयोगिता में वृद्धि करेंगे। ___ इस संकलन में प्रकाशित रचनायें अध्यात्म रसिक साधर्मीजनों को न केवल भक्ति रस का पान करायेंगी, अपितु आत्मानुभूति सम्पन्न ज्ञानी भक्त की अन्तर्परणति का दर्शन कराते हुए स्वयं को वैसा बनने की प्रेरणा देंगी। __सभी जीव पूज्य का स्वरूप जानकर सच्चे पुजारी बनकर पूजा का पारमार्थिक फल प्राप्त करें- यही मंगल भावना है। - अभयकुमार जैन, देवलाली अपने को आत्मा नहीं देखना विश्व की सबसे बड़ी गल्ती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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