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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
देव-शास्त्र-गुरु स्तुति (खण्ड-१)
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नवदेव-भक्ति द्रव्य नमन हो भाव नमन, मन वच काया से करूँ नमन।
- मन वच काया से करूँ नमन ॥टेक॥ तीर्थ प्रणेता श्री तीर्थंकर, वीतराग सर्वज्ञ हितंकर। अरहंतों को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥१॥ सर्व कर्ममल से वर्जित प्रभु, ज्ञानशरीरी अशरीरी विभु। सिद्ध प्रभु को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥२॥ पंचाचार परायण ज्ञायक, साधु संघ के सुखमय नायक। आचार्यों को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥३॥ शास्त्र पढ़ाने के अधिकारी, तत्त्वज्ञान देते अविकारी। उपाध्याय को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥४॥ निज स्वभाव के उत्तम साधक, रत्नत्रय के जो हैं धारक।। निर्ग्रन्थों को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥५॥ समवशरण-सम श्रीजिनमन्दिर, जिन-सम जिनप्रतिमा है सुन्दर। भक्ति भाव से करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥६॥ तरण-तारणी श्री जिनवाणी, पढ़ें-पढ़ावें नित ही ज्ञानी। हर्षित होकर करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥७॥ अनेकांतमय शाश्वत दर्शन, परम अहिंसामयी आचरण। जैनधर्म को करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥८॥ इनसे सम्बन्धित सुखकारी, धर्म आयतन मंगलकारी। यथायोग्य मैं करूँ नमन, मन वच काया से करूँ नमन ॥९॥
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