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________________ 124 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह अक्षत अमलभावमय देव लाऊँ, विनाशीक जग के अपद नाहिं चाहूँ॥ अहो चन्द्रप्रभ जी की पूजा रचाऊँ, सहजज्ञानमय भावना सहज भाऊँ॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । अतीन्द्रिय निजानन्द निज माँहिं सरसे, __सतावे नहीं काम जिनवर शरण से॥अहो...॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । चिदानन्द-सुधारस प्रभो पान करके, क्षुधादिक महादोष क्षणमाँहिं हरके ॥ अहो... ।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । प्रकाशित सहज ज्ञान में नाथ ज्ञायक, झलकते नशे मोह तम दुःखदायक ।। अहो...| ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । जलें कर्म सब आत्म-ध्यानाग्नि माँहीं, सुविकसित हो निजगुण नहीं अन्त पाहीं।। अहो...।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । न लौकिक फलों की प्रभो ! कामना है, महा मोक्षफल पाऊँ यह भावना है। अहो...॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । धरूँ भक्तिमय देव प्रासुक सु अर्घ्य, लहूँ आत्म प्रभुता सु अविचल अनयू।। अहो...॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । पंचकल्याणक अर्घ्य (दोहा) चन्द्रप्रभ जिनराज का, गर्भागम सुखकार। चैत कृष्ण पंचमि दिवस, पूजों भाव सम्हार ।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णपंचम्यांगर्भमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य ॐही चत कृष्णराज का. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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