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________________ 123 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जब तक आराधन पूरा हो, जिनशासन का योग मिले। निर्मल आत्म भावना वर्ते, निज गुणमय उद्यान खिले॥ पाया स्वाश्रित मार्ग चरण में सिर नाया।।श्री सुपार्श्व.।। ॐ ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अयं नि. स्वाहा। (दोहा) श्री सुपार्श्व जिनराज की, भक्ति करें जो कोय । इन्द्रादिक पद पाय के, निश्चय मुक्त सु होय ।। ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ।। श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजन _ (जोगीरासा) तज गृहजाल महादुखकारण, चरण शरण में आया । चन्द्र समान शान्त निर्मल छवि, लखि आनन्द उपजाया। तन मन धन है सर्व समर्पण, करूँ अर्चना स्वामी। चंचल परिणति थिर हो निज में, तुम सम त्रिभुवननामी ।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (भुजंगप्रयात्) चढ़ाऊँ क्षमाभावमय नीर सुखकर, नशें जन्म-मरणादि कारण सु दुखकर ॥ अहो चन्द्रप्रभ जी की पूजा रचाऊँ, सहजज्ञानमय भावना सहज भाऊँ। ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन चढ़ाऊँ परमशान्तिमय प्रभु, ___ भवाताप नाशे जजूं आपको विभु ।। अहो...॥ ॐ ह्रीं श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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