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________________ 122 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जयमाला (दोहा) हुए विरक्त सु जगत से, पतझड़ लख जिनदेव । निर्ग्रन्थ पथ अपनाय के, मुक्त हुए स्वयमेव ।। (तर्ज : चित्स्वरूप महावीर.....) श्री सुपार्श्व जिनराज, मुक्ति पथ दरशाया। परमानन्द स्वरूप, जिनेश्वर दरशाया ।।टेक।। द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय, इन्द्रिय विषयों से प्रभु भिन्न कहा। परम अतीन्द्रिय ज्ञानानन्दमय, सिद्ध समान स्वरूप कहा। स्वानुभूत जिनमार्ग, जिनेश्वर दरशाया ।।श्री सुपार्श्व.॥ द्रव्यकर्म-नोकर्म-भाव कर्मों से न्यारा देव कहा। नित्य निरंजन निष्क्रिय-ध्रुव, निर्मुक्त चिदानन्दरूप अहा॥ नयातीत पक्षातिक्रान्त प्रभु दरशाया।श्री सुपार्श्व.॥ जीवसमास मार्गणा-गुणथानों से, ज्ञायक भिन्न अहा। टंकोत्कीर्ण सु-अलिंगग्रहण, अव्यक्त स्वानुभवगम्य कहा॥ आश्रय करने योग्य, निजातम दरशाया ।।श्री सुपार्श्व.॥ नवतत्त्वों के स्वांगों से, निरपेक्ष निरामय रूप कहा। जिनने समझा भवदुख नाशा, नित्यानंद स्वरूप लहा॥ हेय-उपादेय भेद महेश्वर दरशाया ॥श्री सुपार्श्व.।। रागादिक दुख रूप बताये, वीतराग शिवपंथ कहा। परम अहिंसा से ही होता, भवभ्रमणा का अन्त अहा॥ रत्नत्रय अविकार तुम्हीं ने दरशाया ॥श्री सुपार्श्व.॥ बहिरातमता हेय जान तज, अन्तर आतम हों स्वामी। ध्रुव परमातम पद को साधे, तुम सम ही अन्तर्यामी॥ धन्य-धन्य शिवरूप आपने दरशाया ॥श्री सुपार्श्व.।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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