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________________ 94 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका के निर्णय से निर्भयता उत्पन्न होने की घोषणा की है। उनकी निर्भयता का आधार सत्य की स्वीकृति है, पर-पदार्थों में परिवर्तन की कल्पना नहीं। ___ 2. यदि ज्ञानी और अज्ञानी दोनों पर कोई संकट आ जाये तो ज्ञानी धैर्यधारण करके निर्भय रहेगा और अज्ञानी भयाक्रान्त हो जायेगा। यदि दोनों भगवान का स्मरण करने लगें तो ज्ञानी तो अशुभ से बचकर धैर्यधारण करने के अभिप्राय से भगवान का स्मरण करेगा और अज्ञानी इस अभिप्राय से भगवान को याद करेगा कि कोई देवता आकर संकट दूर कर देंगे। इस अभिप्राय से वह मिथ्यात्व का पोषण ही करेगा। 3. यदि ज्ञानी को थोड़ी बहुत आकुलता भी होती दिखे तो यह उसकी श्रद्धा का दोष नहीं है, अपितु चरित्र की कमजोरी है, क्योंकि परिस्थितियों में परिवर्तन करने का अभिप्राय न होते हुए भी वह स्वरूप में स्थिर नहीं हो पा रहा है। ___ 4. झूठी आशा बनाये रखने के लिए सत्य को स्वीकार न करना महानतम अपराध है। जब तक आशा है तब तक दुःख ही है। आचार्य गुणभद्र ने कहा है कि प्रत्येक प्राणी का आशारूपी गड्ढ़ा इतना गहरा है कि उसमें सारा विश्व भी अणु जैसा है, अर्थात् नहीं के बराबर हैं। अतः उसकी पूर्ति सम्भव न होने से आशा करना ही व्यर्थ है। आशा और निराशा दोनों दुःखरूप हैं, आशा के अभावरूप अनाशा ही सुखरूप है। 5.संसार के कार्यों में निरुत्साहित होना ही श्रेष्ठ है। जो संसार में निरुत्साहित होगा, वह मोक्षमार्ग में उत्साहित होगा। जिसका मनोबल टूटेगा, उसका आत्मबल जागेगा। अतः क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने में ही सच्चा हित है। यह बात हमारे हित के लिए ही कही जा रही है। **** प्रश्न 19 गर्भित आशय :- क्रमबद्धपर्याय हमारी समझ में जब आना होगी तभी आयेगी, उससे पहले या बाद में नहीं। यह तो आप भी मानते हैं, तो हमें समझाने के विकल्प से आप व्यर्थ में क्यों परेशान हो रहे हैं? जब हमारी समझ में आना होगा, तब आ जायेगा और नहीं आना होगा तो नहीं आयेगा। अतः आप जबर्दस्ती समझाने की आकुलता क्यों कर रहे हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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