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________________ क्रमबद्धपर्याय: कुछ प्रश्नोत्तर उत्तर : 1. जिसप्रकार अकालमृत्यु के प्रकरण में अकाल शब्द का अर्थ काल से भिन्न अन्य समवाय है, उसीप्रकार अकालनय में अकाल शब्द का अर्थ काल से भिन्न अन्य समवाय है। 'कृत्रिम गर्मी से आम पकाया गया', इसमें स्वकाल का निषेध नहीं है, अर्थात् वह समय से पूर्व पक गया - ऐसा नहीं है, अपितु यह निमित्त की मुख्यता से कथन है। यदि कृत्रिम गर्मी से ही आम पकते हों तो सभी आम एक साथ क्यों नहीं पक जाते ? तथा एक आम को पकने में एक निश्चित समय क्यों लगता है? इससे सिद्ध हुआ कि कृत्रिम गर्मी से पकने वाला आम भी अपने स्वकाल में ही पकता है, समय से पहले नहीं । जिसप्रकार जीव से भिन्न पुद्गलादि पाँच द्रव्यों को अजीव कहा जाता है। उसी प्रकार काल से भिन्न निमित्तादि अन्य चार समवायों को अकाल कहा जाता है। लोक में भी जैन से भिन्न अन्य धर्मावलम्बियों को अजैन कहा जाता है । जो आम, जिस जगह, कृत्रिम गर्मी से जितने दिन में पकना है वही आम उसी जगह, कृत्रिम गर्मी से ही, उतने ही दिन में पकेगा - यह नियम उसकी परिणमन व्यवस्था में शामिल है। अतः अकालनय और क्रमबद्धपर्याय में कोई विरोध नहीं है । यह हो सकता है कि अकाल का यह अर्थ हमारी धारणा से विपरीत होने से हमें नया लगता हो, परन्तु हमें इस पर गम्भीरता से विचार करके वस्तु व्यवस्था का निर्णय करना चाहिए। **** प्रश्न 18 गर्भित आशय :- भविष्य को सर्वथा निश्चित मानने पर भावी दुर्घटनाओं का पता चलने पर जगत भयभीत हो जायेगा और उन्हें टालने का प्रयत्न असफल जानकर असहाय और निराश हो जाएगा, जिससे उसका मनोबल टूट जायेगा, अतः भले ही पर्यायों का क्रम निश्चित हो, परन्तु लौकिक दृष्टि से उसे स्वीकार न करने में ही हित है। Jain Education International 93 उत्तर : 1. भय और निराशा की उत्पत्ति अज्ञान और कषाय से होती है, वस्तु स्वरूप समझने से नहीं, कवि बुधजनजी ने अपनी आध्यात्मिक रचना में क्रमबद्धपर्याय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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