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________________ क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर 95 -- उत्तर :__ 1. हमारे प्रति आपकी सहानुभूति तो ठीक है, परन्तु हम आपको समझाने के लिए परेशान हो रहे हैं- यह बात नहीं है। हम तो अपने राग के कारण परेशान हो रहे हैं। हमारी वर्तमान भूमिका में न चाहते हुये यह राग आये बिना नहीं रहता। 2. अज्ञानियों को समझाने की करुणारूप शुभराग तो वीतरागी भावलिंगी मुनिराजों को भी आये बिना नहीं रहता, अन्यथा वे परमागमों की रचना क्यों करते? आकुलतास्वरूपहोते हुये भी हमें यह राग आये बिना नहीं रहता कि हमने जिस सत्य को समझने से अपूर्वशांति प्राप्त की है, जगत् भी उस सत्य को समझकर अपूर्व शान्ति का वेदन करे। * * * * प्रश्न 20 गर्भित आशय :-आपकी ऐसी उत्कृष्ट भावना होने पर भी यदि कोई आपकी बात न माने तो आप क्या करेंगे? उत्तर : 1. हम क्या कर सकते हैं? किसी को जबर्दस्ती तो समझा नहीं सकते। जगत् का अज्ञान देखकर करुणा आती है, अतः जैसा वस्तु-स्वरूप जाना है, वैसा बोलने लगते हैं, लिखने लगते हैं। जिनकी भली होनहार होती है वे सुनते हैं, समझते हैं तथा स्वीकार करके सुखी होते हैं, और जो नहीं सुनते या समझते, उनकी होनहार विचार करके हम भी मध्यस्थ भाव धारण करते हैं। यही भाव पण्डित प्रवर टोडरमलजी ने भी व्यक्त किया है। __ स्वभाव दृष्टि से प्राप्त होनेवाले क्रमबद्धपर्यायगत इस महान सत्य को सभी लोग सुनें, समझे जाने-माने और भव-भ्रमण का अन्त करके अनन्त सुखी होंइसी पवित्र भावना से अब मैं विराम लेता हूँ। ** ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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