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________________ 84 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका पर्याय को उत्पन्न करने का अभिमान आप कर रहे हैं, यदि यही पर्याय हुई है तो निश्चित ही वही होनी थी अन्यथा वह होती ही नहीं। उसका उत्पन्न होना ही उसका निश्चित स्वकाल सूचित करता है। इसप्रकार भविष्य की पर्यायों में भी परिवर्तन करना सम्भव नहीं है। अतः यही स्वीकार करना श्रेष्ठ है कि प्रत्येक द्रव्य अपने क्रमनियमित परिणामों से उत्पन्न होता हुआ निजरूप ही रहता है, पररूप नहीं होता। उक्त सन्दर्भ में निम्न शंका-समाधान भी ध्यान देने योग्य है। शंका:-समयसार की उक्त गाथाओं की टीका में “जीवक्रमनियमित ऐसे अपने परिणामों से उत्पन्न होता हुआ जीव ही है" - ऐसा क्यों कहा है। द्रव्य तो अनादि-अनन्त है, अतः वह कैसे उत्पन्न हो सकता है? समाधान :- “क्रमनियमित परिणाम में" का अर्थ यह है कि पर्याय की अपेक्षा देखा जाए तो द्रव्य उत्पन्न होता है। अपने स्वकाल में उत्पन्न होनेवाली पर्यायरूप परिणमित होना ही द्रव्य का उसरूप में उत्पन्न होना है। अतः यह कथन पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा समझना चाहिए। **** प्रश्न 2 से 6 गर्भित आशय :- यदि कोई द्रव्य किसी को नहीं परिणमाता तो परिणमन कौन कर जाता है? यदि कभी वस्तु का परिणमन रुक जाये या कभी जल्दी-जल्दी होने लगे या कभी धीरे-धीरे होने लगे, तो इस गड़बड़ी को कौन दूर करेगा? द्रव्य में ऐसी कौन सी शक्तियाँ हैं जिनसे यह व्यवस्था व्यवस्थित रहती है? उत्तर : 1. ध्रुवता के समान परिणमन करना भी द्रव्य का नित्य स्वभाव है, अतः कभी भी परिणमन रुकने का प्रश्न ही नहीं उठता। प्रत्येक पर्याय एक समय की ही होती है, अतः जल्दी या देरी होने की कोई समस्या नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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