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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका होनहार :-सम्यग्दर्शन होना था इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ। निमित्त :-दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम से सम्यग्दर्शन हुआ। 6. यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि पुरुषार्थ की मुख्यता से कथन आत्मा के मोक्षमार्गरूप कार्य के सन्दर्भ में ही किया जाता है। शेष पाँच द्रव्यों में भी पाँचों समवाय होते हैं, परन्तु उनके कार्यों में पुरुषार्थ की मुख्यता से कथन का कोई प्रयोजन नहीं होता। उनमें प्रायः निमित्त काललब्धि आदि की मुख्यता से कथन होता है। सभी द्रव्यों की कार्योत्पत्ति में पाँचों समवाय समानरूप से होते हैं।
7. मोक्षमार्गरूप कार्य के सन्दर्भ में किसी भी समवाय की मुख्यता से कथन हो, सभी कथनों से पुरुषार्थ की प्रेरणा मिलती है-इस तथ्य को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है।
स्वभाव :-आत्मा का स्वभाव जानने से उसकी महिमा प्रगट होती है। तथा पर-पदार्थों की महिमा टूटती है, जिससे सम्यक् पुरुषार्थ की प्रेरणा मिलती है।
पुरुषार्थ :-पुरुषार्थ का सच्चा स्वरूप समझने से तदनुसार प्रयत्न करने की प्रेरणा मिलती है।
काललब्धि :-प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में होती है- ऐसा समझने से पर्यायों की कर्ताबुद्धि टूटकर दृष्टि स्वभाव-सन्मुख होती है।
होनहार :- होने योग्य कार्य होता ही है- ऐसा निर्णय करने से भी पर्याय की चिन्ता छोड़कर स्वभाव-सन्मुख होने की प्रेरणा मिलती है।
निमित्त :- निमित्त का सच्चा स्वरूप जानने से निमित्ताधीन दृष्टि छोड़कर स्वभाव-सन्मुख होने की प्रेरणा मिलती है।
उक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक समवाय का निर्णय पुरुषार्थ प्रेरक है, अतः मोक्षमार्ग में पुरुषार्थ की मुख्यता से कथन होना स्वाभाविक है। प्रश्न :73. कार्योत्पत्ति में पाँचों समवायों का सुमेल किस प्रकार है, स्पष्ट कीजिये?
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