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क्रमबद्धपयोय : एक अनुशालन
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निमित्त कहा जाता है। यदि स्वभाव सन्मुखता का पुरुषार्थ भी हमारी इच्छानुसार होता तो मुनि होने के बाद जो कार्य भरत चक्रवर्ती को अन्तमुहूर्त में हो गया, वही कार्य होने में मुनिराज ऋषभदेव को एक हजार वर्ष क्यों लगे?
प्रश्न :- काललब्धि आने पर यह जीव सम्यक्त्व का पुरुषार्थ ही करेगा, अन्य कार्यों का नहीं? यह कैसे माना जा सकता है?
उत्तर :-उस काल में सम्यक्त्वरूप कार्य की ही योग्यता है, अन्य कार्यों की नहीं, अतः वह जीव उस समय सम्यक्त्व का पुरुषार्थ ही करेगा। इसलिए उस काल को सम्यग्दर्शन की काललब्धि कहा जाता है।
प्रश्न :-सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में अनुकूल कौन होता है?
उत्तर :-सच्चे देव-शास्त्र-गुरु तथा दर्शनमोहनीय कर्मका उपशम, क्षयोपशम या क्षय सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में अनुकूल कहा जाता है, इसलिए उन्हें सम्यक्त्व की उत्पत्ति में निमित्त कहते हैं।
उपर्युक्त प्रश्नोत्तर श्रृंखला से क्रमशः स्वभाव, पुरुषार्थ, काललब्धि, होनहार और निमित्त का सुमेल स्पष्ट होता है कि विवक्षित कार्यरूप परिणमित होने की योग्यता वाला द्रव्य, उस कार्य के स्वकाल में उसी कार्य की उत्पत्ति करता है, तथा उस समय अनुकूल बाह्य-पदार्थों की उपस्थिति भी सहज होती है।
5. कार्य की उत्पत्ति में प्रत्येक समवाय एक साथ होते हैं, उसमें कोई मुख्यगौण नहीं होता। किसी भी एक समवाय की मुख्यता से कथन हो सकता है। किसी जीव को सम्यक्त्व की उत्पत्ति कैसे हुई? इस प्रश्न का उत्तर प्रत्येक समवाय की मुख्यता से निम्नानुसार होगा।
स्वभाव :-आत्मा के श्रद्धा गुण में सम्यग्दर्शनरूप परिणमन करने की शक्ति से सम्यग्दर्शन हुआ।
पुरुषार्थ :- आत्मा के त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव की प्रतीति करने से सम्यग्दर्शन हुआ।
काललब्धि :- सम्यग्दर्शन होने का स्वकाल आया इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ।
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