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________________ 72 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका ब) वहाँ यह आत्मा जिस कारण से कार्य सिद्धि अवश्य हो उस कारणरूप उद्यम अवश्य करे, वहाँ तो अन्य कारण मिलते ही मिलते हैं और कार्य की सिद्धि होती ही होती है"। इस कथन में स्पष्ट किया गया है कि पुरुषार्थ करने वाले को अन्य समवाय भी मिलते हैं। स) “जो जीव पुरुषार्थ से जिनेश्वर के उपदेशानुसार मोक्ष का उपाय करता है उसके काललब्धि व होनहार भी हुए और कर्म के उपशमादि हुए हैं, तो वह ऐसा उपाय करता है......" इस गद्यांश में भी पुरुषार्थी को अन्य समवाय मिलने की गारन्टी दी गई है। __पुरुषार्थ भी अन्य समवायों के अनुसार ही होता है। पंच समवायों में कोई परस्पर संघर्ष नहीं है, अपितु अद्भुत सुमेल है। इस सुमेल को निम्न प्रश्नोत्तरों से समझा जा सकता है। प्रश्न :- सम्यग्दर्शन किसे होता है? उत्तर :- सम्यग्दर्शन मिकट भव्य जीव को होता है। प्रश्न :-सम्यग्दर्शन कैसे उत्पन्न होता है? उत्तर :-सात तत्त्वों का यथार्थ निर्णय करके त्रिकाली अखण्डज्ञायक स्वभाव का अवलम्बन करने पर सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। प्रश्न :- यह जीव तत्त्व-निर्णय एवं स्वभाव सन्मुखता का पुरुषार्थ कब करेगा? उत्तर:-जब इसकी श्रद्धा ज्ञान आदि गुणों की पर्याय में इस कार्यरूप परिणमन की योग्यता का स्वकाल आएगा, तभी ऐसा पुरुषार्थ करेगा। प्रश्न :-क्या हम उपर्युक्त पुरुषार्थ अपनी इच्छा से अभी नहीं कर सकते? उत्तर :-यदि कर सकते हैं तो कर लें? क्यों नहीं करते? इससे सिद्ध होता है कि इच्छा होना अलग बात है, और कार्य होना अलग बात है। पुरुषार्थ सम्बन्धी इच्छा, विकल्प आदि होने पर भी उनसे पुरुषार्थरूपी कार्य नहीं हो सकता। कार्य तो अपनी तत्समय की योग्यतानुसार होता है। उस समय इच्छा या विकल्प को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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