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________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन 9. क्रमबद्ध पर्याय की स्वीकृति में पुरुषार्थ की उपेक्षा कहीं नहीं है। सर्वत्र पुरुषार्थ को साथ में रखा गया है। जब सभी पर्याय निश्चित हैं तो पुरुषार्थ अनिश्चित कैसे होगा? वह तो स्वयं ही निश्चित हो गया। __10. होनहार के प्रकरण में भी भैया भगवतीदास जी ने पुरुषार्थ की प्रेरणा दी है। ___ 11. पाँचों समवायों में पुरुषार्थ का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि उसी सन्दर्भ में प्रयत्न हो सकता है, अन्य समवायों में तो प्रयत्न करने का उपचार भी सम्भव नहीं है। क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में सम्यक्-एकान्त है, अतः पुरुषार्थ का लोप नहीं हो सकता। प्रश्न :70. कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कथित क्रमबद्ध व्यवस्था शाश्वत सत्य नहीं है - इस मान्यता का तर्क सहित खण्डन कीजिए? 71. क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने पर पुरुषार्थ का लोप क्यों नहीं होता? 72. काल को नियत न मानने पर क्या आपत्ति आएगी? **** पुरुषार्थ एवं अन्य समवायों का सुमेल गद्यांश 27 आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी.................. ..............कुछ भिन्न ही है। (पृष्ठ 52 एवं 53) विचार बिन्दु :___ 1.आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने एक प्रश्न के माध्यम से पाँचोंसमवाय का प्रकरण उठाते हुए एक कारण में अनेक कारण मिलते हैं यह नियम बताकर पाँचों समवायों का सुमेल स्थापित किया है। अ) “तथा पुरुषार्थ से उद्यम करते हैं - यह आत्मा का कार्य है, इसलिए आत्मा को पुरुषार्थ से उद्यम करने का उपदेश देते हैं।" इस कथन में उन्होंने पुरुषार्थ की मुख्यता स्थापित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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