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क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका
को ही स्वीकार किया जाए तो भी शाखा आदि के अभाव का प्रसंग आने से वृक्ष के लोप का भी प्रसंग आएगा ।
सम्यक् एकान्त नय है और सम्यक् अनेकान्त प्रमाण, इसीलिए वस्तु कथञ्चित् (नयों की अपेक्षा) सम्यक् - एकान्तरूप और कथञ्चित् (प्रमाण की अपेक्षा) सम्यक्-अनेकान्तरूप है। वस्तु न सर्वथा एकान्तरूप है और न सर्वथा अनेकान्तरूप है। यही अनेकान्त में अनेकान्त है।
6. मिथ्या अनेकान्त को समझाने के लिये निम्न उदाहरण भी दिये जा
सकते हैं।
1. पाँचवीं और तीसरी कक्षा की पुस्तक मिलकर आठवीं कक्षा की नहीं हो सकती।
2. युद्ध के मैदान में किसी सैनिक का सिर और किसी का धड़ मिलाकर एक सैनिक नहीं बन सकता । अतः दो सर्वथा भिन्न धर्मों के समूहरूप कोई वस्तु नहीं हो सकती।
प्रश्न :
63. एकान्त और अनेकान्त के दोनों भेदों को उदाहरण सहित समझाइए ? 64. जैन- दर्शन अनेकान्त में भी अनेकान्त को स्वीकार करता है। इस कथन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए?
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इस दृष्टि से विचार करने.......
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एकान्त, अनेकान्त और क्रमबद्धपर्याय गद्यांश 25
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. गंभीरता से विचार करें।
(पृष्ठ 44 पैरा 7 से पृष्ठ 48 से पैरा 6 तक)
विचार बिन्दु :
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1. क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में पाँच समवायों में काल की मुख्यता से कथन किया जाये तो सम्यक् - एकान्त होगा, क्योंकि इसमें पुरुषार्थ आदि समवायों को गौण किया है; उनका निषेध नहीं किया गया ।
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