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________________ 64 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 68 पर पाँचों समवायों के सम्बन्ध में पण्डित टोडरमलजी के विचार दिए हैं, वहाँ इनकी विशेष चर्चा की जाएगी। प्रश्न :62. पाँचों समवायों की परिभाषा लिखकर कार्योत्पत्ति में इनकी अनिवार्यता सिद्ध कीजिए। **** अनेकान्त में भी अनेकान्त गद्यांश24 इस पर कुछ लोग.......... .........सम्यक्-अनेकान्त प्रमाण। (पृष्ठ 42 पैरा 6 से पृष्ठ 44 से पैरा 6 तक) विचार बिन्दु :____ 1. कुछ लोगों को क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने में एकान्त की शंका होती है। क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में सम्यक्-एकान्त अवश्य है, परन्तु मिथ्या एकान्त नहीं। 2. इस सन्दर्भ में यह जानने योग्य है कि एकान्त और अनेकान्त सम्यक् और मिथ्या के भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं, जिनका स्वरूप निम्नानुसार है। सापेक्ष नय सम्यक्-एकान्त है, अर्थात् विवक्षित धर्म को मुख्य एवं अन्य धर्मों को गौण करना सम्यक्-एकान्त है। जैसे-द्रव्यदृष्टि से वस्तु नित्य है। ___ निरपेक्षनय मिथ्या-एकान्त है, अर्थात् वस्तु को सर्वथा विवक्षित धर्मरूप ही मानना और अन्य धर्मों का सर्वथा निषेध करना मिथ्या-एकान्त है। जैसे वस्तु सर्वथा नित्य है। ___ सापेक्षनयों का समूह अर्थात् श्रुत-प्रमाण सम्यक्-अनेकान्त है। परस्पर सापेक्ष दोनों धर्मों की स्वीकार करना सम्यक्-अनेकान्त है। जैसे-वस्तु कथञ्चित् नित्य भी है और कथञ्चित् अनित्य भी है। निरपेक्ष नयों का समूह अर्थात् प्रमाणाभास मिथ्या-अनेकान्त है। परस्पर निरपेक्ष दोनों धर्मों को स्वीकार करना मिथ्या-अनेकान्त है। जैसे - वस्तु सर्वथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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