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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन
पाँचसमवाय
गद्यांश 23 कार्योत्पत्ति में पञ्च कारणों..
....ऐसा प्रयोजन है। (पृष्ठ 40 पैरा 5 से पृष्ठ 41 से पैरा 6 तक) विचार बिन्दु :
1. प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति में पाँच समवाय अवश्य होते हैं। स्वभाव, पुरुषार्थ, भवितव्यता (होनहार या नियति) काललब्धि, निमित्त। इस निर्देशिका के मंगलाचरण के पिछले पृष्ठ पर दिए गए काव्य द्वारा इनका स्वरूप निम्नानुसार समझा जा सकता है।
स्वभाव :-वस्तु में विवक्षित कार्य उत्पन्न करने की शक्ति। पुरुषार्थ :-विवक्षित कार्यरूप परिणमि होने में वस्तु की शक्ति का उपयोग। होनहार :- होने योग्य विवक्षित कार्य। काललब्धि :-विवक्षित कार्य की उत्पत्ति का स्वकाल। निमित्त :-विवक्षित कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल बाह्य-पदार्थ। 2. उपर्युक्त पाँचों समवायों में से किसी एक से ही कार्य की उत्पत्ति मानना एवं अन्य समवायों का निषेध करना एकान्त मिथ्यात्व है, तथा कार्योत्पत्ति में प्रत्येक समवाय का योगदान स्वीकार करना सम्यक्-अनेकान्त है।
3. प्रत्येक समवाय का निषेध करने से उत्पन्न होने वाली परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए उसकी उपयोगिता सिद्ध की जा सकती है। जैसे -- यदि स्वभाव को स्वीकार न किया जाए, तो रेत में से भी तेल निकलना चाहिए।
इसीप्रकार किसी एकसमवाय कोही सर्वथा स्वीकार करने से उत्पन्न परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए सर्वथा एकान्त को मिथ्या सिद्ध करना चाहिए। जैसेयदि स्वभाव के अतिरिक्त अन्य किसी समवाय को न माना जाए तो तिल में से अपने आप हमेशा तेल निकलते रहना चाहिए।
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