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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका ____ 3. करने-धरने के विकल्पवाली रागी बुद्धि में सब कुछ अनियत प्रतीत होता है, और निर्विकल्प समाधि के साक्षीमात्र भाव में विश्व की समस्त कार्यव्यवस्था नियत होती है।
4. गोम्मटसार में जिस एकान्त नियतिवादी का वर्णन किया गया है, वह जीव स्वच्छन्दी है, उसने ज्ञान स्वभाव का निर्णय नहीं किया है, अतः वह गृहीत मिथ्यादृष्टि है। ज्ञानस्वभाव के निर्णयपूर्वक यदि इस क्रमबद्धपर्याय को समझें, तो स्वभाव-सन्मुख पुरुषार्थ द्वारा मिथ्यात्व और स्वच्छन्ता टूट जाती है।
5. क्रमबद्धपर्याय को मानने पर पुरुषार्थ उड़ जाता है ऐसा अज्ञानी मानते हैं। क्रमबद्धपर्याय के निर्णय से कर्ता-बुद्धि का मिथ्या अभिमान टूट जाता है और निरन्तर ज्ञायकपने का सच्चा पुरुषार्थ होता है।
6. "ज्ञायक स्वभाव के आश्रय से पुरुषार्थ होता है, तथापि पर्यायों का क्रम नहीं टूटता। देखो, यह वस्तु स्थिति! पुरुषार्थ भी नहीं उड़ता और क्रम भी नहीं टूटता। ज्ञायक स्वभाव के आश्रय से सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रादि का पुरुषार्थ होता है और वैसी निर्मल दशायें होती जाती है, तथापि पर्यायों की क्रमबद्धता नहीं टूटती।"
विशेष निर्देश :- उपर्युक्त गद्यांश पर विशेष ध्यानाकर्षित करते हुए स्पष्टीकरण किया जाए।
7.उक्त कथनों से स्पष्ट है कि एकान्त नियतिवाद और क्रमबद्धपर्याय भिन्नभिन्न हैं, इनमें कोई समानता नहीं है। स्वामीजी एकान्त नियतवाद के पोषक नहीं, अपितु सच्चे अनेकान्तवादी हैं। प्रश्न :58. एकान्त नियतिवाद क्या है? 59. क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने के एकान्त नियतवाद क्यों नहीं होता? 60. क्रमबद्धपर्याय को मानने में पुरुषार्थ किस प्रकार होता है? 61. 'नियति', 'दैव', 'काललब्धि' और 'भवितव्य' की परिभाषा लिखिए?
क्रम
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