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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन हम किस ज्ञेय को जानें और किस ज्ञेय को न जानें? अतः हम ज्ञान पर्याय को स्वभाव-सन्मुख तो कर ही सकते हैं? ____ 2. ज्ञान को स्वभाव-सन्मुख करने के विकल्पों से ज्ञान स्वभाव-सन्मुख नही होता, अपितु इस विकल्प के भार से भी निर्भार होने पर ज्ञान स्वभाव-सन्मुख होता है। ज्ञान की जिस पर्याय में जिस ज्ञेय को जानने की योग्यता है, वह पर्याय उसी ज्ञेय को अपना विषय बनायेगी, उसमें किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं चल सकता।
3. ज्ञेय के अनुसार ज्ञान नहीं होता, अपितु ज्ञान की योग्यतानुसार ज्ञेय जाना जाता है। (प्रमेय रत्नमाला में दिये गये उदाहरण तथा अन्य उदाहरणों से स्पष्ट करना)।
4. विशिष्ट ज्ञेय सम्बन्धी आवरण कर्म का क्षयोपशम जिसका लक्षण है ऐसी योग्यता ही ज्ञान के ज्ञेय को सुनिश्चित करती है।
5. बौद्ध-दर्शन में ज्ञान की ज्ञेय से उत्पत्ति, ज्ञान का ज्ञेयाकार परिणमन तथा ज्ञान का ज्ञेयों में व्यवसाय अर्थात् ज्ञेय को जानना स्वीकार किया जाता है; परन्तु जैन-दर्शन में, योग्यता के आधार पर ज्ञान का परिणमन माना गया है।
6. प्रत्येक पर्याय का ज्ञेय भी निश्चित है, अतः हमें स्व को जानने का बोझ भी नहीं रखना है, तभी हमारी दृष्टि स्वभाव सन्मुख होगी। उपदेश में ऐसी भाषा आती है कि दृष्टि को आत्म-सन्मुख करो अर्थात् आत्मा को जानो परन्तु यह कथन उपचार से है। प्रश्न :49. स्व को जानने के सम्बन्ध में अज्ञानी की क्या मान्यता है? 50. ज्ञेय को जानने के सम्बन्ध में बौद्धों की क्या मान्यता है? 51. ज्ञान द्वारा ज्ञेयों को जानने की क्या व्यवस्था है? 52. दृष्टि स्वभाव-सन्मुख किस प्रकार होती है?
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