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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
अज्ञानी की विपरीत मान्यता
गद्यांश 19 भार लेकर ऊपर चढ़ना......
............कर्तृत्व थोप रहा है।
(पृष्ठ 33 पैरा 6 से 34 सम्पूर्ण) विचार बिन्दु:___ 1. जिसप्रकार अपनी शक्ति से अधिक बोझा ढोते हुए पर्वत पर चढ़ना असम्भव है; उसीप्रकार पर-कर्तृत्व का बोझा ढोते हुए दृष्टि का स्वभाव में प्रवेश करना असम्भव है।
2. स्वयं परिणमनशील इस जगत के परिणमन का उत्तरदायित्व हमारे माथे नहीं है, फिर भी अज्ञानी अपनी मिथ्या कल्पनासे पर को परिणमित कराने के बोझ से दबा जा रहा है।
3. गम्भीरता से विचार करें तो इस शरीर परिणमन के कर्ता भी हम नहीं हैं, तो अन्य पदार्थों का परिणमन करने की बात ही कहाँ रही?
विशेष निर्देश :-पाठ्य पुस्तक में दिए गये तर्कों के आधार पर स्पष्ट करें कि हम शरीर के परिणमन के भी कर्ता नहीं हैं। प्रश्न :47. अज्ञानी की दृष्टि, स्वभाव में प्रवेश क्यों नहीं कर सकती? 48. हम अपने शरीर के परिणमन के कर्ता भी नहीं हैं - यह बात कैसे सिद्ध होती है?
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ज्ञान का परिणमन भी इच्छाधीन नहीं है?
- गद्यांश 20 इस पर कुछ लोग कहते हैं..... ..............विचार किया जाएगा।
(पृष्ठ 35 पैरा 1 से 37 पैरा 6 तक) विचार बिन्दु :
1. अज्ञानी कहता है कि भले हम पर-पदार्थों का परिणमन नहीं कर सकते, परन्तु ज्ञान तो हमारी पर्याय है, इसलिए हम यह तो निश्चित कर ही सकते हैं कि
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