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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन
57. परिणमन करना वस्तु का सहज स्वभाव है
गद्यांश 18 इसी बात को यदि..
.............भार को भार में। (पृष्ठ 31 पैरा 5 से पृष्ठ 33 पैरा 5 तक) विचार बिन्दु :____ 1. प्रत्येक द्रव्य द्रव्यत्व गुण के कारण परिणमन स्वभावी है। जो द्रवे अर्थात् परिणमन करे, उसे द्रव्य कहते हैं; अतः द्रव्य अपने नियमित प्रवाह क्रम में निरन्तर बहता रहता है, इसलिये वह अपने प्रवाह क्रम को भंग क्यों करेगा?
2. प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में खचित है इसलिए उसे उसके स्वकाल से हटाना सम्भव नहीं है।
3. हमें उपर्युक्त वस्तु स्वरूप को सहज स्वीकार कर लेना चाहिए। यह स्वीकृति ही धर्म का आरम्भ है, क्योंकि इससे दृष्टि सहज ही स्वभाव सन्मुख हो जाती है। जो क्रमबद्ध पर्याय को स्वीकार करता है, उसकी पर्यायों में स्वभाव सन्मुखता का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। वस्तु-स्वरूप में ऐसा सुव्यवस्थित सुमेल है। प्रवचनसार गाथा 107 में द्रव्य और गुण के समान पर्याय को भी एक समय का सत् कहा है। ___4. अज्ञानी को अपने द्रव्य-गुण का ज्ञान नहीं है, इसलिए उसकी दृष्टि पर्यायों को बदलने के विकल्प में उलझी रहती है, द्रव्य-स्वभाव पर नहीं जाती है, अतः वह पर्यायमूढ़ बना रहता है। पर्याय को स्वकाल का सत् स्वीकार करने पर उन्हें बदलने का बोझा उतर जाता है, और दृष्टि निर्भार होकर अन्तर में प्रवेश करती है। प्रश्न :43. द्रव्य किसे कहते हैं? उसका स्वभाव क्या है? 44. द्रव्य की पर्याय को उसके स्वकाल से हटाना सम्भव क्यों नहीं है? 45. दृष्टि स्वभाव-सन्मुख किस प्रकार होती है? 46. अज्ञानी की दृष्टि अपनी पर्यायों को बदलने के विकल्प में क्यों उलझी रहती है।
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