SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 55 क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन नहीं करते, फिर भी उनका परिणमन व्यवस्थित होता रहता है, फिर हम अपने या पर के परिणमन की चिन्ता करके दुःखी क्यों हों? हम पर-पदार्थों का कुछ नहीं कर सकते, कर्तृत्व का अभिमान मात्र करते हैं। हमारी दशा चलती गाड़ी के नीचे चलने वाले कुत्ते जैसी हो रही है। हम पर-पदार्थों या अपनी पर्यायों में परिवर्तन तो कर नहीं सकते, मात्र करने की चिन्ता करते हैं और चिन्ता के कर्ता तभी तक है जब तक अज्ञान है। क्रमबद्धपर्याय की श्रद्धा ही हमें इस चिन्ता से मुक्त करके निश्चिन्त कर सकती है। प्रश्न :38. क्रमबद्ध-पर्याय समझने का मूल उद्देश्य क्या है? 39. हमें पर-पदार्थों और अपनी पर्यायों के क्रम में परिवर्तन की चिन्ता क्यों नहीं करना चाहिए? 40. हमें पर और पर्यायों की चिन्ता से मुक्त कौन कर सकता है? **** जैन-दर्शन का अकर्त्तावाद गद्याश17 जैन-दर्शन अकर्त्तावादी... ...............परिणाम का कर्ता है। (पृष्ठ 29 पैरा 2 से पृष्ठ 31 पैरा 4 तक) विचार बिन्दु : 1.जैन-दर्शन अकर्त्तावादी दर्शन है। अकर्तावाद में निम्न सिद्धान्त गर्भित हैं। अ. ईश्वर जगत् का कर्ता नहीं है। ब. एक द्रव्य किसी अन्य द्रव्य के परिणमन का कर्त्ता नहीं है। स. ज्ञानी जीव अपने विकारी परिणामों के भी कर्ता नहीं है। द. परमार्थ से द्रव्य अपनी पर्यायों का कर्ता भी नहीं है। परन्तु यहाँ इस अपेक्षा की मुख्यता नहीं है। यहाँ तो प्रत्येक द्रव्य अपने परिणामों का कर्ता अवश्य है, परन्तु वह उनके क्रम में कुछ परिवर्तन का कर्ता नहीं है - यह अपेक्षा मुख्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy