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________________ 53 क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन 31. तीर्थंकर महावीर की दिव्यध्वनि 66 दिन क्यों नहीं खिरी? इस प्रश्न का उत्तर कषाय पाहुड़/धवला में किस अपेक्षा से दिया गया है? 32. काललब्धि आने पर ही कार्य उत्पन्न होता है - ऐसा मानने से क्या लाभ है? 33. प्रत्येक कार्य भवितव्यता के अनुसार होता है? यह समझने के लिए किसी घटना में प्रश्नोत्तर की श्रृंखला का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए? **** रागी जीव भी पर-पदार्थों के परिणमन का कर्त्ता नहीं है। गद्यांश 15 इस पर कई लोग कहते हैं... ............... पर मैं तो कर सकता हूँ। (पृष्ठ 26 पैरा 7 से पृष्ठ 27 पैरा 5 तक) विचार बिन्दु :____ 1. उक्त गद्यांश में अज्ञानी की मान्यता के पक्ष में तर्क प्रस्तुत हुए उनका समाधान किया गया है। अज्ञानी कहता है कि भगवान वीतरागी हैं, जगत के ज्ञाता-दृष्टा हैं, कर्ताधर्ता नहीं, अतः वे पर-पदार्थों का परिणमन नहीं बदल सकते, परन्तु हम तो रागी हैं, अल्पज्ञ हैं, हमें कुछ कर दिखाने की तमन्ना भी है, अतः हमारी तुलना सर्वज्ञ भगवान से नहीं करना चाहिए। हम क्यों नहीं बदल सकते? यदि हम नहीं बदल सकते, तो हमारा परिणमन भगवान के ज्ञान के आधीन हो जाएगा। 2. वस्तु का परिणमन अपनी योग्यतानुसार स्वतंत्र होता है, ज्ञान तो उसे जानता मात्र है, परिणमता नहीं है। ज्ञान, वस्तु के परिणमन में कोई हस्तक्षेप नहीं करता, इसलिए ज्ञान में ज्ञात होने मात्र से वस्तु की स्वतंत्रता खण्डित नहीं होती। यदि कोई यह कहे कि भगवान पर-पदार्थों का परिणमन नहीं बदल सकते परन्तु हम तो बदल सकते हैं, तो उसका यह कहना हास्यास्पद है, क्योंकि जो कार्य अनन्तवीर्यकेधनी सर्वज्ञ भगवान नहीं कर सकते, वह कार्ययह अल्पवीर्यवान अल्पज्ञ करना चाहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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