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क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका
उत्तर :- इसमें कोई क्या कर सकता है? यह तो अपने-अपने कर्मों का फल है। उसने ऐसे ही अशुभ कर्मों का बन्ध किया था, जिससे ऐसा संयोग मिला। प्रश्न :- उसने ऐसे अशुभ कर्म क्यों बाँधे ?
उत्तर :- कर्म तो अपने भावों के अनुसार बँधते हैं उसने ऐसे ही भाव किये थे । प्रश्न :- उसने ऐसे भाव क्यों किये? अच्छे भाव क्यों नहीं किये?
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उत्तर :- यह तो जीव की तत्समय की योग्यता पर निर्भर है। उस समय ऐसे ही भाव होना थे अतः हुए। इसमें वह स्वयं या अन्य कोई क्या कर सकता है?
जरा सोचिए ! अन्तिम प्रश्न का उत्तर इसके अलावा और क्या हो सकता है? इसीप्रकार अन्य घटनाओं का विश्लेषण करके भी यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। यहाँ अन्तिम उत्तर में अलंघ्य शक्ति वाली भवितव्यता के ही दर्शन हो रहे हैं। यद्यपि यह बात अन्तिम प्रश्न के उत्तर में आई है, तथापि उक्त घटना के प्रत्येक अंश में व्याप्त है । जब बात भवितव्यता पर आ गई तब आगे कोई प्रश्न भी शेष नहीं रह जाता । सभी विकल्प समाप्त हो जाते हैं, किसी में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि नहीं रहती और दृष्टि सहज ही स्वसन्मुख होने का अपूर्व पुरुषार्थ प्रगट कर लेती है ।
प्रश्न :
27. निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ स्पष्ट कीजिए :
अ. कार्य की उत्पत्ति हेतुद्वय से होती है ?
ब. विवक्षित कार्य ही भवितव्यता का लिंङ्ग/ज्ञापक - हेतु है ?
स. भवितव्यता की शक्ति अलंघ्य है?
द. भवितव्यता के बिना अनेक सहकारी कारण मिलने पर भी कार्य उत्पन्न नहीं होता?
28. कार्य की उत्पत्ति सर्वज्ञ के ज्ञानानुसार होती है या भवितव्यता के अनुसार ? 29. विवक्षित कार्य में और भवितव्यता में कौन-सा सम्बन्ध है ?
30. कषायों के अनुसार कार्य होना असम्भव क्यों है ?
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