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________________ : 48 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका - 26 जनवरी, 2001 को गुजरात में भूकम्प आया था। यदि यह पूछा जाए कि भूकम्प क्यों आया? तो भवितव्यता की अपेक्षा यह कहा जाएगा कि वह तो आना ही था, इसलिए आया? पुनः प्रश्न होगा कि आप तो सर्वज्ञ नहीं हैं, फिर आप कैसे कह सकते हैं कि भूकम्प आना ही था? इसी प्रश्न का उत्तर आचार्य समन्तभद्र कार्यलिङ्ग कहकर दे रहे हैं कि भूकम्प होना स्वयं कह रहा है, कि उसे आना ही था।होनहार का भूकम्प के होने से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है। इसप्रकार भूकम्प रूपी धुआँ, उसकी भवितव्यता रूपी अग्नि का ज्ञापक हेतु अर्थात् लिङ्ग है। होनी (कार्य) ही होनहार (भवितव्यता) का ज्ञापक है। यह ध्यान देने की बात है कि भवितव्यता, कार्य का उत्पादक कारण है, जबकि कार्य भवितव्यता का ज्ञापक कारण अर्थात् हेतु है। धुएँ से अग्नि उत्पन्न नहीं होती, परन्तु उसका ज्ञान होता है; जबकि अग्नि जलाने पर ही धुंआ उत्पन्न हो सकता है, अग्नि के बिना नहीं। 'यह निरीह संसारी प्राणी भवितव्यता के बिना अनेक सहकारी कारणों को मिलाकर भी कार्य सम्पन्न करने में समर्थ नहीं होता।' इस कथन में सहकारी कारणों से आशय बाह्य निमित्तों से है। वस्तुतः अज्ञानी जीव बाह्य निमित्त मिलाने का विकल्प करता है और यदि योग्यतानुसार उन निमित्तों का संयोग हो जाए तो उपचार से ऐसा कहा जाता है कि जीव ने निमित्त मिलाए। यदि विवक्षित कार्य सम्पन्न हो जाए तो उन निमित्तों को उपचार से सहकारी कारण कहा जाता है और यदि विवक्षित कार्य न हो तो उन निमित्तों को सहकारी कारण कहने का उपचार भी लागूनहीं होता। यह बात अलग है कि जगत में कार्य न होने पर भी अनुकूल बाह्य पदार्थों को रूढ़िगत सहकारी या निमित्त कारण कहा जाता है। जैसे-सम्यग्दर्शन होने पर ही देव-शास्त्र-गुरु और उनकी श्रद्धा को सहकारी कारण कहा जा सकता है, फिर भी जगत में सामान्यरूप से देव-शास्त्र-गुरु और उनकी श्रद्धा को सम्यग्दर्शन का निमित्त या सहकारी कारण कहा जाता है, चाहे किसी को सम्यग्दर्शन हो या न हो या फिर कोई अज्ञानी उनका स्वरूप विपरीत समझकर मिथ्यात्व का पोषण भी क्यों न कर लें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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