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________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन वेश्या के लक्ष्य से ज्ञानी वैराग्य का और अज्ञानी राग का पोषण करते हैं, फिर भी जगत में वैश्या को राग का ही निमित्त कहा जाता है, वैराग्य का नहीं और यही उचित है। पद्मनन्दि पञ्चविंशतिका के अध्याय 3 के 53वें छन्द में भी भवितव्यता वह करती है जो उसे रुचता है- ऐसा कहकर सज्जनों को मोह-राग-द्वेष का त्याग करने की प्रेरणा दी गई है। पण्डित आशाधरजी ने अध्यात्म रहस्य में कर्तृत्व का अहंकार छोड़कर भगवती भवितव्यता का आश्रय लेने की प्रेरणा दी है। यहाँ भगवती, विशेषण उसकी महानता को बताता है। पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार के अनुसार कार्य की उत्पत्ति सर्वज्ञ के ज्ञानअनुसार होगी इस कथन में भी कोई विरोध नहीं है। वे लिखते हैं कि सर्वज्ञ भगवान भवितव्यता के अनुसार होने वाले कार्य के साथ उसके सभी कारणों को भी जानते हैं; अत: एकान्त नियतिवाद या एकान्त भवितव्यता का प्रसंग नहीं आता। ___ पदार्थों का परिणमन सर्वज्ञ के ज्ञान के आधीन नहीं है, अपितु जैसा परिणमन होना है, वैसा ज्ञान योग्यतानुसार स्वयं होता है; इसलिए ज्ञान ज्ञेयाकार अर्थात् ज्ञेय के अनुसार है, ज्ञेय ज्ञानाकार नहीं है, अर्थात् ज्ञान के आधीन नहीं है। पण्डित टोडरमलजी ने भी कषायों के अनुसार कार्य नहीं होता, अपितु भवितव्यता के अनुसार कार्य होता है - ऐसा कहकर कषाय को दुःख का कारण कहकर उसे छोड़ने की प्रेरणा दी है। यदि कषायों के अनुसार कार्य की उत्पत्ति होना माना जाए तो__ 1. वस्तु का परिणमन कषाय के आधीन हो जाएगा, जिससे वस्तु के स्वतंत्र परिणमन की व्यवस्था खण्डित हो जाएगी। 2. किसी एक कार्य के सम्बन्ध में हर व्यक्ति की इच्छा अलग-अलग होती है। किसान चाहता है कि वर्षा हो और कुम्हार चाहता है कि वर्षा न हो। कोई व्यक्ति अपने शत्रु को हानि पहुँचाना चाहता है और उस कथित शत्रु का मित्र उसे लाभ पहुंचाना चाहता है। इसप्रकार परस्पर विरुद्ध इच्छाएँ होने से वस्तु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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