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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन
4.लिङ्गशब्द से आशय :- प्रत्येक कार्य हेतुद्वय से उत्पन्न होता है, और वह कार्य भवितव्यता का लिङ्ग अर्थात् ज्ञापक हेतु है। यहाँ कार्य को भवितव्यता का ज्ञापक या हेतु कहा गया है-इसमें बहुत गम्भीर रहस्य है। ___ हेतु' शब्द उत्पत्ति के कारणों के अर्थ में भी होता है, परन्तु न्यायशास्त्र में 'हेतु' शब्द का प्रयोग ज्ञापक अर्थात् ज्ञान करानेवाले अर्थ में भी होता है। हेतुद्वय से उत्पन्न होनेवाला कार्य इस वाक्यांश में हेतु शब्द उपादान और निमित्त कारणों के अर्थ में है और कार्यलिङ्गा में लिङ्ग शब्द ज्ञापक हेतु के अर्थ में है। __ अनुमान-प्रमाण के प्रकरण में हेतु को साध्य की सिद्धि करने वाला अर्थात् ज्ञान कराने वाला कहा गया है। जैन न्याय में ज्ञापक हेतु के 22 भेद बताए गए हैं। जब हम धुंआ देखकर अग्नि का ज्ञान करते हैं, तब अग्नि को साध्य और धुएँ को उसका साधन, हेतु या लिङ्ग कहा जाता है।
5. कार्य को भवितव्यता का ज्ञापक हेतु क्यों कहा गया है :- जब कोई भी कार्य होता है, तब यह प्रश्न सहज उत्पन्न होता है कि यह कार्य क्यों हुआ? अज्ञानीजन निमित्तों को या ईश्वर आदि अदृश्य शक्तियों को या स्वयं को कार्य का कर्त्ता मानकर दुःखी होते हैं। जैनशासन में प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति में पाँचसमवायों को कारण माना गया है। यहाँ भवितव्यता की मुख्यता से उसे भी कार्य की उत्पत्ति का कारण कहा गया है। किसी कार्य की भवितव्यता अर्थात वह होना है या नहीं - यह सर्वज्ञ जानते हैं, हम नहीं, अतः विवक्षित कार्य की ही भवितव्यता थी अर्थात् यही होना था ऐसा कहा जाएगा। तब यह प्रश्न सहज उपस्थित होता है कि यह आपने कैसे जाना कि यही होना था? तब यह कहा जाएगा कि जो यह कार्य हुआ है यही इसका प्रमाण है कि यही होना था, अर्थात् कार्यका होना ही उसकी होनहार या भवितव्यता को सिद्ध कर रहा है। अनुमान की दृष्टि से यहाँ कार्य धुएँ के स्थान पर है और भवितव्यता अग्नि के स्थान पर है।
उक्त स्पष्टीकरण को निम्न घटना पर घटित करके अच्छी तरह समझा जा सकता है।
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