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________________ 46 - क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका ___3. आचार्यकल्प पण्डित प्रवर टोडरमलजी के कथनानुसार “इच्छानुसार कार्य होना भवितव्य के आधीन है, इच्छा के आधीन नहीं।" ____4. कषायपाहुड वधवलाटीका में सौधर्म इन्द्र को भी काललब्धि के अभाव में गणधर को उपस्थित करने में असहाय बताया गया है। विशेष स्पष्टीकरण :-आचार्य समन्तभद्र ने स्वयंभूस्तोत्र में भवितव्यता का स्वरूप बताते हुए उसे “हेतुद्वय से उत्पन्न होनेवाला कार्य जिसका लिङ्ग है" इस विशेषण से सम्बोधित करते हुए उसकी शक्ति को अलंघ्य कहा है, अतः उनका स्वरूप कुछ उदाहरण देते हुए संक्षेप में स्पष्ट कर देना चाहिए। नोट :- यहाँ उपादान और निमित्त को हेतुद्वय कहा है, अतः उनका स्वरूप कुछ उदाहरण देकर स्पष्ट कर देना चाहिए। उक्त कारिका में निम्न बिन्दु विशेषरूप से समझने योग्य हैं : 1. अलंध्यशक्तिर्भवितव्यतेयम् :- भवितव्यता अर्थात् होने योग्य कार्य या होनहार, उसकी शक्ति अलंघ्य है अर्थात् जो कार्य होना है, उसे कोई टाल नहीं सकता। टी.वी. पर दिखाए जानेवाले प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक महाभारत में किसी पात्र को विदुर से यह कहते हुए दिखाया गया है- ‘होनी को अनहोनी तो नहीं किया जा सकता विदुरजी!' तथाकथित धार्मिक कार्यक्रमों में भी अनेक बार यह बताया जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सृष्टि नियंता शक्तियाँ भी विधि के विधान के अनुसार कार्य करने को विवश हैं। 2. हेतु द्वयाविष्कृत :- यद्यपि प्रत्येक कार्य अपनी उपादानरूप शक्ति से तत्समय की योग्यतानुसार स्वयं उत्पन्न होता है, तथापि उससमय अनुकूल बाह्य पदार्थ अवश्य उपस्थित होते हैं, जिन्हें निमित्त कहा जाता है। इसप्रकार प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति में निश्चय हेतु उपादान है, तथा व्यवहार हेतु निमित्त है। वहाँ उपादान और निमित्त अर्थात् कार्योत्पत्ति के निश्चय और व्यवहार कारणों की सन्धि स्थापित करते हुए प्रत्येक कार्य को हेतुद्वय अर्थात् दो प्रकार के हेतुओं से उत्पन्न होने वाला कहा गया है। ____ 3. कार्यलिंगा :- यह एक सामासिक शब्द है- इसका आशय है कि कार्य है लिङ्ग अर्थात् चिन्ह जिसका। यह भवितव्यता का विशेषण है इसलिए लिङ्ग शब्द को स्त्रीलिङ्ग में लिङ्ग रखा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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