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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन यद्यपि रविवार के बाद सोमवार आदि प्राकृतिक नियमों को तथा स्वप्नज्ञान या ज्योतिषज्ञान के आधार पर कुछ लोग भविष्य के बारे में अनुमान अवश्य करते हैं, परन्तु सुख-दुख, संयोग-वियोग आदि के बारे में जैसा केवली जानते हैं, वैसा हम नहीं जानते हैं, वैसा हम नहीं जानते, इसलिए अपनी इच्छानुसार परिणमन करने की मिथ्या मान्यता से ग्रस्त रहकर दुखी हो रहे हैं। ___पर्यायों के निश्चित क्रम को अपने अज्ञान के कारण भले हम न जानते हों, परन्तु इससे वस्तु की व्यवस्था पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। पर्यायों का क्रम तो निश्चित है ही, जिसे सर्वज्ञ द्वारा प्रत्यक्ष जाना जाता है।
यही कारण है कि यहाँ सर्वज्ञ के ज्ञान के आधार से तथा क्षेत्र के नियमित विस्तार क्रम से काल की नियमितता समझाई जा रही है। प्रश्न :25. विस्तारक्रम और प्रवाहक्रम को उदाहरण सहित समझाइये? 26. काल की नियमितता समझने के लिए क्षेत्र की नियमितता को आधार क्यो बताया गया है?
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भवितव्यता के आधार से कर्तृत्व का निषेध
गद्यांश 14 प्रसिद्ध तार्किक आचार्य...................................भी नहीं टाल सकते हैं।
(पृष्ठ 24 पैरा 3 से पृष्ठ 26 पैरा 6 तक) विचार बिन्दु :
1. इस गद्यांश में स्वयंभूस्तोत्र, पद्मनन्दि पञ्चविंशतिका, अध्यात्म रहस्य, मोक्षमार्ग प्रकाशक, और कषायपाहुड के आधार से भवितव्यता का उल्लेख करते हुए कर्तृत्व के अहंकार को छोड़ने की प्रेरणा दी गई है।
2. पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार ने सर्वज्ञता और भवितव्यता में ज्ञानज्ञेय सम्बन्ध स्थापित करते हुए भी दोनों की स्वतंत्रता का निरूपण किया है।
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