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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका सीढ़ियों के क्रम तथा सिनेमा की रील की लम्बाई के उदाहरण से भी क्षेत्र और काल का नियमित प्रवाहक्रम समझाया गया है। आजकल अनेक स्थानों पर स्वचलित सीढ़ियाँ लगी रहती हैं। वे सीढ़ियाँ भी अपने-अपने नियमित क्रम में प्रगट होती हैं। इसीप्रकार पर्यायें भी अपनेअपने नियमित क्रम में प्रगट होती हैं। - प्रत्येक पर्याय स्वसमय से रचित है तो उसे आगे-पीछे कैसे किया जा सकता है? अतः प्रत्येक परिणाम अपने-अपने अवसर में ही प्रगट होता है। । उक्त सम्पूर्ण विश्लेषण से यही निष्कर्ष निकलता है कि जिस द्रव्य की, जो पर्याय, जिस समय, जिस कारण से होनी है, उस द्रव्य की, वही पर्याय, उसी समय, उसी कारण (निमित्त) से होगी। विशेष स्पष्टीकरण :- जिसप्रकार मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता आदि नामवाले क्षेत्रों को उनके सुनिश्चित स्थान से इधर-उधर नहीं किया जा सकता, उसीप्रकार आकाश के या किसी भी, बहुप्रदेशी द्रव्य के प्रदेशों को उनके स्थान से इधर-उधर नहीं किया जा सकता, यह व्यवस्था ही द्रव्य का नियमित विस्तारक्रम है। परमाणु और कालाणु एक प्रदेशी हैं, अतः उनमें विस्तारक्रम होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। इसीतरह जिसप्रकार जनवरी, फरवरी या रविवार, सोमवार आदि नाम वाले कालांशों को आगे-पीछे नहीं किया जा सकता; उसीप्रकार प्रत्येक द्रव्य के किसी भी कालांश अर्थात् पर्याय को उसकेस्वकाल से आगे-पीछे नहीं किया जा सकता। यह व्यवस्था ही द्रव्य का नियमित प्रवाहक्रम अर्थात् क्रमबद्धपर्याय है। क्षेत्र के सुनिश्चित क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता, यह बात हम प्रत्यक्ष देखते ही हैं। यद्यपि क्षेत्र अमूर्तिक हैं, तथापि 100 फुट लम्बा 50 फुट चौड़ा हॉल, बड़ा मकान, छोटा मकान, गाँव, जिला, महानगर आदि के व्यवहार का प्रयोग भी हम करते हैं, और हमें उनमें परिवर्तन का विकल्प भी नहीं होता। क्षेत्र हमें दिखाई पड़ता है। थोड़ी बहुत भूतकालीन पर्यायें हमारे स्मृतिज्ञान का विषय बनती हैं, परन्तु भविष्य की पर्यायों के बारे में हम कुछ नहीं जानते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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