________________
क्रमबद्धपर्याय: एक अनुशीलन
क्षेत्र का नियमित विस्तार क्रम 1. द्रव्य के सम्पूर्ण प्रदेशों को एक साथ विस्तार की अपेक्षा से देखा जाए तो उसका सम्पूर्ण क्षेत्र एक अर्थात् अखंड है।
2. द्रव्य के विस्तारक्रम का अंश प्रदेश है। 3. क्षेत्र में प्रदेशों का एक नियमित विस्तार क्रम है।
4. मोतियों के हार में जो मोती जिस स्थान क्रम में हैं, उसी नम्बर पर सदा रहेगा, उसमें परिवर्तन सम्भव नहीं है (अन्यथा हार टूट जाएगा।)
5. मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता आदि क्षेत्राशों नाम हैं। जिसप्रकार मुम्बई के क्षेत्र वहाँ से उठाकर दिल्ली वाले क्षेत्र में नहीं रखा जा सकता, उसीप्रकार एक प्रदेश को अपने स्थान से खिसकाकर आगे पीछे नहीं किया जा सकता।
7. लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एकएक कालाणु खचित है।
1.
Jain Education International
2.
3.
4.
5.
43
काल का नियमित प्रवाह क्रम
द्रव्य के त्रिकालवर्ती परिणामों को एक प्रवाह की अपेक्षा एक साथ देखा जाए तो उसका प्रवाह त्रैकालिक, एक अर्थात् अखंड है।
द्रव्य के प्रवाहक्रम का अंश परिणाम हैं।
काल में पर्यायों का एक नियमित प्रवाहक्रम है।
झूलते हुए हार में मोतियों के प्रगट होने काल नियमित है । (झूलते हुए हार से आशय दोनों उंगलियों के बीच पकड़कर एक - एक मोती क्रम से खिसकाने से है । जाप करने में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है । )
6. लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने ही 6. तीन काल के जितमे समय हैं, उतनी ही प्रत्येक द्रव्य की पर्यायें हैं।
प्रत्येक जीव के प्रदेश हैं।
जनवरी, फरवरी आदि माह तथा रविवार, सोमवार आदि दिन, कालांशों ही नाम हैं । जिसप्रकार जनवरी वाले कालांश को फरवरी में तथा रविवार के कालांश को सोमवार में नहीं रखा जा सकता, उसीप्रकार किसी भी द्रव्य के एक समयवर्ती कालांश (पर्याय) को उससे पहले या बाद में नहीं किया जा सकता ।
7. तीनों काल के एक-एक समय में प्रत्येक
द्रव्य की एक-एक पर्याय खचित है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org