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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका विद्यमान है, अर्थात् उन प्रान्त जिलों और गांवों में परस्पर अनुस्यूति से रचित एक वास्तुपना है, अतः भारत एक अखंड राष्ट्र है।
द्रव्य, स्वभाव से ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक परिणामों की परम्परा में रहता है, इसलिए, द्रव्य स्वयं भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। प्रश्न :21. प्रदेश किसे कहते हैं? 22. परिणाम किसे कहते हैं? 23. प्रदेशों और परिणामों में क्रम क्यों हैं? 24. त्रिलक्षण परिणाम पद्धति क्या है?
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क्षेत्र और काल का नियमित क्रम
गद्यांश 13 उक्त प्रकरण में सर्वत्र.......... ............वह तदनुसार ही होती है।
(पृष्ठ 22 पैरा 2 से पृष्ठ 24 पैरा 2 तक) जिसप्रकार क्षेत्र में प्रत्येक प्रदेश का क्रम नियमित अर्थात् सुनिश्चित है, उसीप्रकार काल अर्थात् पर्याय के प्रगट होने का काल भी नियमित अर्थात् सुनिश्चित है।
क्षेत्र और काल के नियमित क्रम को आगामी पृष्ठ पर दी गई तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है।
द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का सन्तुलन ही व्यवस्थितपना है,
तथा इनका असन्तुलन अव्यवस्थितपना है।
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