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क्रमबद्धपर्याय: एक अनुशीलन
किसी हॉल की लम्बाई-चौड़ाई को विस्तार क्रम का उदाहरण बनाकर उसके विस्तार क्रम को समझाते हुए उसमें उत्पाद-व्यय - ध्रौव्य घटित करना चाहिए। जैसे 50 फुट लम्बे हॉल में उसकी लम्बाई नापते समय 10 वां फुट आया अर्थात् 10वें रूप से उत्पन्न हुआ, अतः वह उत्पादरूप है 10वें का उत्पाद ही 9वें का व्यय है, अतः वह 9वें फुट के अभाव अर्थात् व्ययरूप है और सम्पूर्ण अखण्ड हॉल की अपेक्षा वह 10 वां फुट अपने स्थान पर सदैव रहता है अर्थात् न तो उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है, अतः वही ध्रौव्यरूप है।
रेलयात्रा करते समय किसी परिचित स्टेशन में भी ये तीनों घटित किए जा सकते हैं। जैसे बड़ौदा का आना उत्पादरूप है, वह सूरत के जानेरूप होने से व्ययरूप है। बड़ौदा का आना ही सूरत के जानेरूप है, तथा बड़ौदा अपने स्थान पर सदा स्थिर होने से न आनेरूप है न जानेरूप है अतः ध्रौव्यरूप हैं ।
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इसीप्रकार सम्यक्त्व पर्याय में भी त्रिलक्षण परिणाम पद्धति घटित करें। वह पर्याय अपने स्वरूप से उत्पन्न हुई, अतः उत्पादरूप है। सम्यक्त्व का उत्पाद ही मिथ्यात्व का व्यय है, अतः मिथ्यात्व की अपेक्षा सम्यक्त्व पर्याय व्ययरूप हैं तथा त्रिकालवर्ती परिणामों के अखण्ड प्रवाहक्रम में प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में सदा विद्यमान है, अतः वह ध्रुवरूप है।
इसीप्रकार अन्य अनेक उदाहरणों से उपर्युक्त बिन्दुओं को समझाया जा सकता है।
परस्पर अनुस्यूति : - दो भिन्न अंगों में एकता का आधार ही अनुस्यूति है । यद्यपि प्रत्येक प्रदेश और प्रत्येक परिणाम परस्पर भिन्न-भिन्न हैं, तथापि उनमें कथञ्चित् भिन्नता है, सर्वथा भिन्नता नहीं । जिस द्रव्य के वे प्रदेश और परिणाम हैं, वह द्रव्य उनमें सदा विद्यमान हैं, अतः वे प्रदेश और परिणाम मानों उस द्रव्य के कारण परस्पर अनुस्यूतिरूप हैं अर्थात् बंधे हैं। हार में सभी मोती धागे में गुंथे हैं, अर्थात् उनमें परस्पर अनुस्यूति है । भारत के सभी प्रान्त, जिले और गाँव परस्पर भिन्न हैं; फिर भी प्रत्येक प्रान्त, जिले और गांव में एक अखंड भारत
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