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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका द्रव्य के प्रदेश अथवा परिणाम परस्पर भिन्न होते हैं, इसलिए उनमें क्रम होता है। द्रव्य के सभी प्रदेश एक साथ फैले होते हैं, किन्तु जहाँ एक प्रदेश है वहीं दूसरा प्रदेश नहीं है, तथा जहाँ दूसरा प्रदेश है वहीं पूर्व का या अगला प्रदेश नहीं है। इसलिए प्रदेशों में विस्तारक्रम होता है।
इसीप्रकार द्रव्य के परिणाम प्रवाहक्रम अर्थात् एक के बाद एक अपने क्रम में प्रगट होते हैं। जिस काल में जो परिणाम है, उस काल में दूसरा नहीं है, तथा जिस काल में दूसरा परिणाम है उसमें पूर्व का या अगला परिणाम नहीं है। इसलिए परिणामों में प्रवाहक्रम होता है।
2. प्रत्येक प्रदेश और परिणाम उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप है, इसे त्रिलक्षण परिणाम पद्धति कहते हैं।
प्रत्येक प्रदेश या परिणाम अपने स्वरूप की अपेक्षा उत्पादरूप है पूर्वरूप की अपेक्षा व्ययरूप है तथा परस्पर अनुस्यूति से रचित एक वास्तुपने से प्रवाहक्रम में अनुत्पन्न और अविनष्ट होने से ध्रौव्यरूप है।
उपर्युक्त विलक्षण परिणाम पद्धति में प्रवर्तमान द्रव्य, स्वभाव का अतिक्रम नहीं करता, अतः द्रव्य भी विलक्षण अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप है। ___ आचार्य ने झूलते हुए मोतियों के हार के उदाहरण से विलक्षण परिणाम पद्धति को समझाया है।
निर्देश :- उक्त टीका और भावार्थ के आधार पर निम्न बातों का विशेषरूप से स्पष्ट करना चाहिए
(अ) प्रदेश (ब) परिणाम (स) विस्तारक्रम (द) परस्पर अनुस्यूति (इ) विलक्षण परिणाम पद्धति
विशेष स्पष्टीकरण :-कपड़े के थान में उसकी चौड़ाई (अर्ज) विस्तार जैसा है, तथा उसकी लम्बाई प्रवाह जैसी है, इसे ताना बाना भी कहते हैं। यहाँ तानाबाना क्रमशः परिणाम और प्रदेश हैं। इस उदाहरण से उक्त सभी बिन्द स्पष्ट किये जा सकते हैं।
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