SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन निगोद से निकलकर जीव अपनी योग्यतानुसार पुण्य भाव करके मनुष्य गति प्राप्त करता है। इस सन्दर्भ में भरत चक्रवर्ती के पुत्रों की चर्चा प्रसिद्ध है, जो निगोद से निकलकर चक्रवर्ती के पुत्र होकर मोक्ष गए। ढाई-द्वीप के सभी तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, इन्द्र आदि के भव भी केवली भगवान के ज्ञान में निश्चित हैं, तथा यथासमय उस क्षेत्र के केवली आदि की वाणी में भी यह सब जानकारी आती है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम अपनी इच्छानुसार पुण्य करके तीर्थंकर इन्द्र, चक्रवर्ती या देव आदि हो जायें यह सम्भव नहीं है। नरक जाने योग्य भाव भी हम अपनी इच्छानुसार न तो कर सकते हैं और न होनेवाले भावों को रोक सकते हैं। हमारी तत्समय की योग्यतानुसार जो भाव होने हैं, वे भाव ही हम उस समय करेंगे और तदनुसार वैसी गति में जायेंगे। यदि हमारे भविष्य में तीर्थंकर आदि पर्यायों का क्रम होगा तो हम सहज ही वैसे भाव करेंगे, अन्यथा वैसे भाव करना चाहें तो भी न कर सकेंगे। प्रश्न :- हमारे पुण्य-पाप भाव हमारी इच्छा के आधीन नहीं हैं, तो यदि हमें सप्त-व्यसन आदि के भाव आते हैं तो आने दें! उन्हें रोकने का प्रयत्न क्यों करें? तत्व-निर्णय और सम्यग्दर्शन आदि की पर्यायें भी हमारे आधीन नहीं हैं, तो हम इनके लिए प्रयत्न क्यों करें? इस स्थिति में तो हम स्वच्छन्द हो जायेंगे? उत्तर :- भाई! जरा गहराई से सोचो! यदि तुम अपने पाप-भावों को रोक सकते हो तो क्यों नहीं रोक लेते? और सम्यग्दर्शनादि प्रगट क्यों नहीं कर लेते? इससे सिद्ध होता है कि परिणाम हमारी इच्छा के आधीन नहीं है। जिसे परिणामों की स्वतंत्रता की श्रद्धा होती है उसकी दृष्टि ज्ञायक स्वभाव पर होने से उसे अमर्यादित पापभाव आते ही नहीं हैं और सम्यग्दर्शनादि निर्मल परिणाम होने लगते हैं। अतः परिणामों की स्वतंत्रता स्वीकार करना ही निर्मल पर्याय प्रगट करने का उपाय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy