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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
प्रश्न :-परिणामों की स्वतंत्रता का निर्णय करना हमारी इच्छा के आधीन है या नहीं?
उत्तर :- यह ऐसा विचित्र प्रश्न है कि यदि इसका उत्तर हाँ में दिया जाए, तो उसका अर्थ ना होगा, और यदि ना में दिया जाए, तो उसका अर्थ हाँ होगा।
यदि कोई माँ अपने छोटे बालक को थपकी देकर सुलाए और फिर उससे पूछे पप्पू! सो गए क्या? तो यदि बालक सो गया हो, तो कुछ नहीं बोलेगा, और यदि वह हाँ कहे तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह अभी सोया नहीं।
इसीप्रकार यदि हम यह कहें कि हाँ! क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करना तो हमारे आधीन है, तो इसका अर्थ यह हुआ अभी हमें परिणामों की स्वतंत्रता और अकर्तास्वभाव का यथार्थ निर्णय नहीं हुआ है। यदि निर्णय हो गया हो तो इस प्रश्न का उत्तर अनुभूतिस्वरूप मौन ही होगा, वाणी नहीं।
यदि कोई वक्ता सभा में पीछे बैठे श्रोताओं से पूछे कि आवाज आ रही है या नहीं? और वे कहें कि नहीं आ रही हैं; तो इसका अर्थ हुआ कि आवाज आरही है, अन्यथा वे उत्तर कैसे देते? ___ इसीप्रकार यदि हम कहें कि क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करना भी हमारी इच्छा के आधीन नहीं है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि हमें उसका निर्णय हो गया है, अन्यथा हम नहीं कहकर पर्यायों की स्वतंत्रता का स्वीकार कैसे करते? ____ 2. इस व्यवस्था में पराधीनता नहीं, अपितु एक-एक समय की पर्याय की स्वतंत्रता सिद्ध होती है। ___3. विशेष स्पष्टीकरण :- जगत यह समझता है कि "जैसा हम चाहें वैसा करें" अर्थात् उसकी इच्छानुसार वस्तु का परिणमन हो तो उसे स्वाधीनता नजर आती है; परन्तु वह नहीं सोचता कि इस व्यवस्था में वस्तु का परिणमन इच्छा के आधीन हो गया, अतः वस्तु की स्वाधीनता खण्डित हो गई।
यह पहले भी कहा जा चुका है कि इच्छानुसार कार्य होना वस्तु की स्वतन्त्रता नहीं है, अपितु वस्तु की तत्समय की योग्यतानुसार कार्य होना ही वस्तु की स्वतन्त्रता
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