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क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका
2. चारों गतियों के जीवों की संख्या निश्चित है, इसमें भी कोई परिवर्तन नहीं होता ।
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3. प्रत्येक जीव नित्यनिगोद से अधिकतम दो हजार सागर के लिए निकलता है तथा दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय आदि के निश्चित भव धारण करता है । जैसेमनुष्य के 48 भव मिलते हैं।
उक्त नियमों से यह निष्कर्ष निकलता है कि चारों गतियों के जीवों की संख्या, प्रत्येक जीव के भाव तथा पुण्य-पाप आदि भाव और तदनुसार कर्मों का बन्धउदय आदि सम्पूर्ण व्यवस्था सुनिश्चित है।
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प्रश्न :
18. करणानुयोग में प्रतिपादित किन नियमों के आधार पर सुनिश्चित क्रमबद्ध परिणमन की व्यवस्था सिद्ध होती है।
पुण्य-पाप भाव भी हमारी इच्छानुसार नहीं होते गद्यांश 11
इस पर लोगों को लगता है कि..
(पृष्ठ 17 पैरा 5 से पृष्ठ 20 पैरा 3 तक )
विचार बिन्दु :
1. जब यह कहा जाता है कि प्रत्येक जीव के परिणाम, कर्मबन्ध, उदय तथा भव आदि सब निश्चित हैं, हम उसमें परिवर्तन नहीं कर सकते तो अनेक लोगों को यह आपत्ति होना स्वाभाविक है कि हमारे हाथ में तो कुछ नहीं रहा, हम तो एकदम बंध गए। पुरुषार्थ की व्यर्थता या निष्फलता सम्बन्धी अनेक प्रश्न भी उत्पन्न होते हैं, जिनकी चर्चा आगे यथास्थान की आएगी।
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. किया गया है।
वास्तव में शुभाशुभ भाव क्रमशः अपने आप बदलते रहते हैं । कोई भी परिणाम धारावाही रूप से अन्तमुहूर्त तक ही रहता है, इससे अधिक नहीं। जीव की इच्छा या प्रयत्न से कुछ भी परिवर्तन नहीं होता ।
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