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________________ 35 क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन (द) सम्राट चन्द्रगुप्त के स्वप्नों के आधार पर की गई भविष्य की घोषणाएँ आज भी सिद्ध हो रही हैं। __ अज्ञानियों को ऐसा लगा कि भगवान द्वारका जला देंगे, परन्तु वे तो वीतरागी और सर्वज्ञ थे। उन्होंने तो जैसा जाना था वैसा कह दिया था। भगवान द्वारा द्वारका जलाए जाने की बात तो दूर रही, द्वीपायन मुनि व अन्य लोगों ने भी उसे बचाने के बहुत प्रयत्न किये, परन्तु उससमय वे ही उसके जलने में निमित्त बने।द्वारका तो स्वयं अपनी उपादानगत योग्यता से अपने स्वकाल में जली। मारीचि को भी 24वाँ तीर्थंकर होना बताया गया था। अतः सहज ही उसके परिणाम ऐसे हुए की एक-कोड़ी सागर तक अनेकों भव धारण किए।मारीचिका स्वतंत्र परिणमन भी आदिनाथ द्वारा की गई घोषणा के अनुरूप ही था प्रश्न :16. भगवान नेमिनाथ द्वारा द्वारिका जलने की घोषणा सुनकर किन लोगों पर क्या प्रतिक्रिया हुई? 17. प्रथमानुयोग की किन घटनाओं से क्रमबद्धपर्याय' का पोषण होता है? **** करणानुयोग से क्रमबद्धपर्याय का समर्थन गद्यांश 10 तथा क्या करणानुयोग में............. ...............पर ऐसा नहीं होता है। (पृष्ठ 16 पैरा 2 से पृष्ठ 17 पैरा 4 तक) विचार बिन्दु :- इस गद्यांश में करणानुयोग में वर्णित वस्तु व्यवस्था के कुछ नियमों के आधार पर सिद्ध किया गया है कि प्रत्येक जीव के समस्त भव और उनका क्रम निश्चित है। वे नियम निम्नानुसार है :___ 1.छ: महीने आठ समय में छ: सौ आठजीवों का निगोद से निकलना और इतने ही जीवों का मोक्ष जाना निश्चित है। इस संध्या में कभी परिवर्तन नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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