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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
इसप्रकार अनेक आगम प्रमाणों से सर्वज्ञता और त्रिकालज्ञता सहजसिद्ध होने पर भी लोग पूछते हैं कि क्रमबद्धपर्याय की बात कौन से शास्त्र में लिखी है? वास्तव में देखा जाए तो सम्पूर्ण जिनागम में सर्वज्ञता और क्रमबद्धपर्याय के स्वर गूंजते हैं।
समाज में प्रचलित पूजन-पाठों में क्रमबद्धपर्याय की बात सर्वत्र सुनाई देती है। इस संदर्भ में लेखक ने चन्द्रप्रभ पूजन की जयमाला का उल्लेख किया है। इसीप्रकार आचार्य समन्तभद्र कृत "स्वयंभू स्तोत्र" तथा अन्य अनेक पूजनों में भी सर्वज्ञता और क्रमबद्धपर्याय की बात आती है।
प्रश्न :15. रत्नकरण्ड श्रावकाचार और चन्द्रप्रभ पूजन के आधार से क्रमबद्धपर्याय क.
समर्थन कीजिए?
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प्रथमानुयोग से क्रमबद्धपर्याय का समर्थन
गद्यांश प्रथमानुयोग के सभी शास्त्र......... ............की घोषणायें की गई थीं।
(पृष्ठ 14 पैरा 5 से पृष्ठ 16 पंक्ति 1 तक) विचार बिन्दु ः- इस गद्यांश में लेखक ने प्रथमानुयोग में प्रसिद्ध चार घटनाओं का उल्लेख करके भविष्य की घटनाओं का निश्चित होना सिद्ध किया है। वे घटनाएँ निम्नानुसार हैं।
(अ) भगवान नेमिनाथ ने 12 वर्ष पूर्व द्वारका जलने की घोषणा कर दी थी।
(ब) भगवान आदिनाथ ने मारीचि के 24वें तीर्थंकर होने की घोषणा एक कोड़ा-कोड़ी सागर पहले कर दी थी।
(स) आचार्य भद्रबाहु द्वारा निमित्त-ज्ञान के आधार पर उत्तर भारत में बारह वर्ष के अकाल की घोषणा कर दी गई थी, जो पूर्णतः सत्य सिद्ध हुई।
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