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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका सर्वज्ञता के विरोध में व्यवहारनय का दुरुपयोग
गद्यांश अत्यन्त स्पष्ट उक्त आगम............. ..........बात ही कहाँ रह जाती है?
(पृष्ठ 10 पैरा 3 से पृष्ठ 11 पैरा 3 तक) विचार बिन्दुः___ 1. इस गद्यांश में नियमसार गाथा 159 और परमात्मप्रकाश अध्याय 1 के पाँचवे दोहे के आधार पर सर्वज्ञता का विरोध करने वालों का उल्लेख किया गया है।
उनका कहना है कि केवली भगवान लोकालोकको व्यवहारनय से जानते हैं और समयसार गाथा 11 में व्यवहारनय को अभूतार्थ बताया गया है, अतः केवली के द्वारा लोकालोकको जानना अभूतार्थ हुआ तो सर्वज्ञता भीअभूतार्थ हुई। इसप्रकार सर्वज्ञता अभूतार्थ अर्थात् असत्य सिद्ध होती है। प्रश्न:12. पूर्वपक्ष द्वारा नियमसार गाथा 159 क्यों प्रस्तुत की गई है?
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अज्ञानी द्वारा प्रस्तुत शंका का समाधान
गद्यांश7 पर उनका यह कथन भी.......
..........दूषण प्राप्त होगा। (पृष्ठ 11 पैरा 4 से पृष्ठ 13 पैरा 4 तक) विचार बिन्दु :____ 1. इस गद्यांश में पूर्वपक्ष द्वारा प्रस्तुत तर्क का उत्तर दिया गया है। नियमसार गाथा के 159 तथा परमात्मप्रकाशअध्याय 1 दोहा 5 के आधार यह सिद्ध नहीं होता कि केवली भविष्य को नहीं जानते। परमात्मप्रकाश अध्याय 1, गाथा 52 की टीका में भी स्पष्ट किया गया है कि केवली भगवान पर को तन्मय होकर नहीं जानते, इसलिए व्यवहार कहा गया है, न कि उनके परिज्ञान का हीअभाव होने के
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