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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
2. विशेष स्पष्टीकरण :___ अज्ञानी सर्वज्ञता को हृदय से स्वीकार करता है, बुद्धि से नहीं इसका आशय यह है कि यह जीव कुल-मान्यता से या परम्परागत श्रद्धा से तथा आगम के आधार पर यह तो मानता है कि जगत में सर्वज्ञ हैं, परन्तु तर्क और युक्ति से सर्वज्ञ स्वभावकी श्रद्धापूर्वक और अकर्ता स्वभाव की दृष्टि पूर्वक सर्वज्ञ की सत्ता को स्वीकार नहीं करता। अतः जब सर्वज्ञ की श्रद्धा से यह फलितार्थ निकलता है कि प्रत्येक पर्याय की उत्पत्ति निश्चित समय में होती है, तो उसकी परम्परागत श्रद्धा को ठेस पहुंचती है। प्रश्न :9. भविष्य की पर्यायों के उत्पत्ति का समय भी निश्चित है- ऐसा कहने पर अज्ञानी की
क्या प्रतिक्रिया होती है?
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सर्वज्ञता-पोषक आगम प्रमाण
गद्यांश5 पर उसका यह अथक..
..........सानुरोध आग्रह है। (पृष्ठ 6 पैरा 3 से पृष्ठ 10 पैरा 2 तक) विचार बिन्दु :
1.अज्ञानी यह सिद्ध करना चाहता है कि 'सर्वज्ञ भगवान भविष्य को निश्चित रूप से नहीं जानते', परन्तु उसका यह प्रयास सफल नहीं हो पाता, क्योंकि सम्पूर्ण जिनागम सर्वज्ञता की सिद्धि से भरा पड़ा है। इस गद्यांश में लेखक ने 8 आगम प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि केवली भगवान प्रत्येक द्रव्य की भूत और भविष्य की पर्यायों को भी वर्तमानवत् स्पष्ट जानते हैं। सर्वज्ञसिद्धि जैनन्याय-शास्त्र का प्रमुख विषय है, फिर भी जब न्याय के विशेषज्ञ विद्वान भी सर्वज्ञता के सम्बन्ध में आशंकाएँ व्यक्त करते हैं या उसकी नई-नई व्याख्यायें प्रस्तुत करने
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