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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन वस्तु के परिणमन के कर्ता नहीं हैं और उसका क्रम भी निश्चित नहीं करते, अपितु उसे जानने मात्र हैं। सर्वज्ञता दर्पण है तो वस्तु व्यवस्था वह पदार्थ है, जिसका प्रतिबिम्ब सर्वज्ञतारूपी दर्पण में पड़ता है। अतः सर्वज्ञताक्रमबद्धपर्याय काज्ञापक हेतु है, कारक हेतु नहीं। सर्वज्ञ का ज्ञान और वस्तु का परिणमन दोनों स्वतंत्र हैं, कोई किसी के आधीन नहीं है। ___ यहाँ प्रश्न है कि सर्वज्ञ भगवान सब कुछ जानते हैं, तो पर्यायें क्रमबद्ध सिद्ध होती हैं, परन्तु हम तो नहीं जानते; अतः हमारे क्षयोपशम ज्ञान की अपेक्षा पर्यायों काक्रम अनियमित माना जाए? परन्तुभाई! हमारे नजानने से परिणमन अनियमित कैसे हो जाएगा? हमारे ज्ञान में पदार्थों के परिणमन का क्रम ज्ञात न होना हमारे अज्ञान का सूचक है, पदार्थों के अनियमित परिणमन का नहीं। प्रश्न :5. क्रमबद्धपर्याय किसे कहते हैं? 6. सर्वज्ञता को क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में हेतु क्यों कहा गया है? 7. सर्वज्ञता द्वारा क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि कैसे होती है? 8. हम वस्तु के परिणमन का क्रम नहीं जानते, इस अपेक्षा पर्यायों का क्रम अनियमित
है- क्या यह मान्यता सही है?
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अज्ञानी द्वारा सर्वज्ञता का विरोध
गद्यांश4 निष्पन्न पर्यायों की..
.................रास्ते निकालता है। (पृष्ठ 5 पैरा 6 से पृष्ठ 6 पैरा 2 तक) विचार बिन्दु:___ 1. जब भविष्य को निश्चित कहा जाता है, तो अज्ञानी चौंक उठता है, क्योंकि इसमें कर्त्तापने के अभिमान को चोट पहुँचती है। वह सर्वज्ञ की सत्ता से इन्कार भी नहीं कर पाता, अतः सर्वज्ञता की व्याख्यायें बदलने लगता है, ताकि सर्वज्ञता का निषेध भी नहीं हो, और कर्तृत्व का अभिमान भी सुरक्षित रह जाए।
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