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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
i क्रमांक ii. पाठ्यपुस्तक में सम्बन्धित प्रकरण की पृष्ठ संख्या ii. ग्रन्थ का नाम/गाथा iv. ग्रन्थ का वाक्यांश v. प्रयोजन अर्थात् वह आगम प्रमाण किस सिद्धान्त की पुष्टि हेतु दिया
गया है। 8. विशेष स्पष्टीकरण :
सर्वज्ञताको क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सबसे प्रबल हेतु बताया गया है। यहाँ न्याय-ग्रन्थों में वर्णित अनुमान प्रयोग में हेतु और साध्य के अनुसार स्पष्टीकरण किया जाना चाहिए। - धुएँ से अग्नि की सत्ता का ज्ञान किया जाता है, क्योंकि वह अग्नि से अविनाभावी है, अर्थात् अग्नि के होने पर ही होता है, अग्नि के बिना नहीं होता, इसलिए अग्नि की सिद्धि अर्थात् अग्नि के ज्ञान में धुंआ सर्वाधिक प्रबल हेतु है। इसीप्रकार सर्वज्ञता का स्वरूपजानने से ही क्रमबद्धपर्याय को जाना जा सकता है, क्योंकि वस्तु का परिणमन सर्वज्ञ के ज्ञानानुसार ही होता है, उससे विरुद्ध नहीं।
जिसप्रकार अग्नि के होने पर ही धुंआ होता है, यदि अग्नि न होती तो धुंआ कैसे होता? इसीलिए धुंआ अग्नि की सिद्धि करने में हेतु है। उसीप्रकार प्रत्येक वस्तु के क्रमबद्ध परिणमन को सम्पूर्ण जानने से ही भगवान सर्वज्ञ हैं, यदि वस्तु का परिणमन क्रमबद्ध नियमित न होता तो भगवान उसे जानते कैसे? अतः केवली भगवान द्वारा वस्तु का जानना ही उसके सुनिश्चित परिणमन को सिद्ध करता है।
इसप्रकार यह स्पष्ट है कि सर्वज्ञ भगवान प्रत्येक वस्तु का त्रैकालिक स्वरूप जानते हैं, इससे ही परिणमन का सुनिश्चित क्रम सिद्ध हो जाता है; इसीलिए सर्वज्ञता को क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में प्रबल हेतु कहा गया है। ___ यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि जिसप्रकार धुंआ अग्नि का ज्ञान कराता है, अग्नि को उत्पन्न नहीं करता; अतः वह अग्नि का ज्ञापक-हेतु है, कारक-हेतु नहीं। उसीप्रकार सर्वज्ञता से क्रमबद्ध-व्यवस्था का ज्ञान होता है, सर्वज्ञ भगवान
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