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________________ 20 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका प्रकार सर्वांङ्ग सुन्दरता और परिपूर्णता प्रदान की है- इसकी चर्चा भी की गई है। पुस्तक के दोनों खण्डों और परिशिष्टों का परिचय भी दिया गया है। सन् 1979 लेखक के लिए क्रमबद्धपर्याय वर्ष हो गया था। अन्त में उन्होंने विद्वानों से इसकी कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का पुनः अनुरोध किया है, क्योंकि वे इस विषय को अत्यन्त महत्वपूर्ण और गम्भीर मानते हैं, तथा इसे निर्विवाद रूप से सर्वांङ्ग सुन्दर प्रस्तुत करना चाहते हैं “सारा जगत क्रमबद्धपर्याय का सही स्वरूपसमझकर अनन्त सुखी हो” यह भावना व्यक्त करते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त की है। प्रश्न :14. इस कृति को लिखते समय लेखक ने क्या सजगता रखी? 15. इसे सर्वांगीण बनाने के लिए लेखक ने क्या प्रयास किये? 16. सन् 1979 लेखक के लिए क्रमबद्धपर्याय वर्ष क्यों बन गया? 17. इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में लेखक की अन्तर-भावना क्या है? भगवान तुम्हारी वाणी में जैसा जो तत्त्व दिखाया है। जो होना है सो निश्चित है केवलज्ञानी ने गाया है। उस पर तो श्रद्धा ला न सका परिवर्तन का अभिमान किया। बनकर पर का कर्ता अब तक सत् का न प्रभो सन्मान किया। __ - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : देव-शास्त्र-गुरु पूजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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