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________________ अध्याय 2 क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन क्रमबद्धपर्याय आज दिगम्बर.. भूमिका गद्यांश 1 (पृष्ठ 1 पैरा 1 और 2 ) विचार बिन्दु : इस गद्यांश में लेखक ने पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी द्वारा अध्यात्म जगत में किए गए क्रान्ति के शंखनाद के फलस्वरूप इस विषय के बहुचर्चित होने का उल्लेख करते हुए चिन्ता प्रकट की है, कि अभी भी इस विषय पर गहन विचारमन्थन की प्रवृत्ति का अभाव है । इस विषय को महान दार्शनिक उपलब्धि निरूपित करते हुए उन्होंने खेद व्यक्त किया है कि इसे व्यर्थ के वाद-विवाद हँसी-मजाक एवं सामाजिक राजनीतिक का विषय बना लिया गया है । वे चाहते हैं कि इस पर विशुद्ध दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार किया जाए, अतः यहाँ जिनागम के परिप्रेक्ष्य में युक्ति एवं उदाहरण सहित अनुशीलन प्रस्तुत किया जा रहा है। विशेष स्पष्टीकरण :- उक्त विचार में समागत बिन्दुओं का निम्नानुसार स्पष्टीकरण किया जाए - Jain Education International (अ) सामाजिक राजनीति समाज में अनेक प्रकार के ग्रुप व पन्थ आदि प्रचलित हैं, अतः उनके पक्ष-विपक्ष से ग्रस्त होने के कारण लोग इस सिद्धान्त के पक्ष या विरोध में हो जाते हैं, इस विषय पर आगम और युक्ति के आधार पर विचार नहीं करते हैं। अनुशीलन अपेक्षित है : (ब) हँसी मजाक :- अपनी गल्तियों को छिपाने के लिए लोग 'क्रमबद्ध' में ऐसा ही होना था - ऐसा कहते हुए हँसकर टाल देते हैं । इस प्रवृत्ति से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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