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________________ क्रमबद्धपर्याय : आदर्श प्रश्न-पत्र आदर्श प्रश्न 1 (निम्न प्रश्नों के आधार पर और भी प्रश्न बनाकर अभ्यास कराया जाना चाहिए।) प्रश्न 1:- निम्न प्रश्नों के उत्तरों को सही स्थान पर लीखिए? 1. एक के बाद एक पर्याय का होना - इसी का नाम है। - नियमितता 2. जिसके बाद जो होना है वह पर्याय होती है। - क्रम 3. द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के सुमेल को कहते हैं। - प्रदेश 4. प्रवाहक्रम के सूक्ष्म अंश को कहते हैं। - व्यवस्थित 5. विस्तारक्रम के सूक्ष्म अंश को कहते हैं। - परिणाम 6. द्रव्य का प्रत्येक प्रदेश या परिणाम उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप . हैं, इसलिये इस पद्धति को कहते हैं। -- भवितव्यता 7. लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर खचित है। - त्रिलक्षण परिणाम पद्धति 8. होने योग्य कार्य को कहते हैं। - कालाणु 9. क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सबसे प्रबल हेतु हैं। - होनहार 10. वस्तु की सहज शक्तियों को कहते हैं: - सर्वज्ञता 11. प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति के निश्चित समय को कहते हैं। - निमित्त 12. सुनिश्चित क्रम में होने वाले कार्य को कहा जाता है। -काललब्धि 13. जिस पर कार्य की उत्पत्ति का जिस पर में आरोप किया जाता है, वह बाह्य-पदार्थ कहलाता है। -स्वभाव प्रश्न 2. हाँ या ना में उत्तर दीजिए? 1. ईश्वर सृष्टि का कर्ता है। 2. एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता है। 3. ज्ञानी अपने रागादि भावों का कर्ता नहीं है। 4. द्रव्य अपनी पर्यायों के क्रम में परिवर्तन का कर्ता नहीं है। 5. जगत का जो कार्य हमारे ज्ञान में अव्यवस्थित लगता है, वास्तव में वह भी व्यवस्थित ही ___है। कोई भी कार्य अव्यवस्थित लगना हमारा अज्ञान है। 6. कार्य की उत्पत्ति में काललब्धि मुख्य करना और अन्य समवायों के गौण करना सम्यक् एकान्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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