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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका निमित्त की मुख्यता से कथन किया जाता है। परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि निमित्त की मुख्यता से कथन मात्र होता है निमित्त से कार्य नहीं होता।
प्रश्न 18. जब निमित्त से कार्य नहीं होता तो उसे उपचार से भी कारण कहने का क्या प्रयोजन है?
उत्तर :- निमित्त का यथार्थ ज्ञान होने पर वह उपादान का कर्ता है- ऐसी मिथ्या मान्यता मिट जाती है ; तथा धर्म के सच्चे निमित्त देव-शास्त्र-गुरु की सच्ची श्रद्धा होती है। अन्यथा हम उन्हें ही अपने हित का कर्ता मानते रहेंगे। इसप्रकार कारण-कार्य व्यवस्था का यथार्थ ज्ञान करने के लिए निमित्त का यथार्थ ज्ञान करना आवश्यक है।
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अहा! देखो तो सही! क्रमबद्धपर्याय के निर्णय में कितनी गम्भीरता है! द्रव्य की पर्याय पर-पदार्थों से उत्पन्न होती है - यह बात तो है ही नहीं, परन्तु द्रव्य स्वयं अपनी पर्याय को उल्टीसीधी बदलना चाहे तो भी वह नहीं बदलती। जैसे त्रिकाली द्रव्य पलटकर अन्यरूप नहीं होता, वैसे उसका एक समय का अंश (परिणाम) पलटकर अन्य अंशरूप नहीं होता।
- अध्यात्म गंगा : बोल क्रमांक 375
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