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________________ 124 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका होनहार :- सम्यग्दर्शन होना था इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ। निमित्त :- दर्शनमोहनीय कर्म के उपशम आदि से सम्यग्दर्शन हुआ। प्रश्न 16. प्रत्येक समवाय की उपयोगिता या अनिवार्यता समझाईये? उत्तर :- किसी भी कार्य की उत्पत्ति के संबंध में मुख्यतः पाँच प्रश्न उत्पन्न होते हैं। जिनका समाधान निम्न समयवों से प्राप्त होगा। यदि सम्यग्दर्शन को विवक्षित कार्य मानें तो निम्न प्रश्नोत्तर श्रृंखला के माध्यम से पाँच समयवों की उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है। प्रश्न :- सम्यग्दर्शन कौन करेगा? उत्तर :- अति आसन्न भव्य जीव ही सम्यग्दर्शन प्रगट करेगा, क्योंकि उसी में सम्यग्दर्शन प्रगट करने की योग्यता होती है। अन्य जीवों में तत्समय की योग्यता का अभाव होने से तथा पुद्गल आदि अजीव द्रव्यों में त्रैकालिक शक्ति का अभाव होने से उनमें सम्यग्दर्शन प्रगट नहीं होगा। इस प्रकार स्वभाव की उपयोगिता सिद्ध हुई। प्रश्न :- सम्यग्दर्शन कैसे उत्पन्न होगा? उत्तर :- आत्महित की भावनापूर्वक ज्ञानी गुरु की देशना के निमित्त से सात तत्त्वों का यथार्थ निर्णय करके आत्मा के त्रैकालिक शुद्ध स्वभाव की प्रतीति करने से ही सम्यग्दर्शन प्रगट होगा। इस प्रकार पुरुषार्थ की उपयोगिता सिद्ध हुई। प्रश्न :- यह जीव सम्यग्दर्शन का पुरुषार्थ कब करेगा? उत्तर :- जब सम्यग्दर्शन प्रगट होने का स्वकाल होगा तब ही जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करने का पुरुषार्थ करेगा। उससे पहले या बाद में नहीं। इस प्रकार नियति काल लब्धि की उपयोगिता सिद्ध हुई। प्रश्न : उस काल में सम्यग्दर्शन का पुरुषार्थ ही क्यों होगा, केवलज्ञान का क्यों नहीं? उत्तर :- उस काल में सम्यग्दर्शन ही होना है, केवलज्ञान नहीं, अतः सम्यग्दर्शन का ही पुरुषार्थ होगा। इस प्रकार भवितव्यता की उपयोगिता सिद्ध हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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