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क्रमबद्धपर्याय : प्रासंगिक प्रश्नोत्तर
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पद्म पुराण सर्ग 31 श्लोक 213 में राम को वनवास और भरत को राज्य दिए जाने पर जनसामान्य की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आचार्य रविषेण लिखते हैं: कालः कर्मेश्वरो दैवं स्वभावः पुरुषः क्रिया । नियतिर्वा करोत्येवं विचित्रं कः समीहितम् ॥
"ऐसी विचित्र चेष्टा को काल, कर्म, ईश्वर, दैव, स्वभाव, पुरुष, क्रिया अथवा नियति ही कर सकती है, और कौन कर सकता है?"
उक्त सन्दर्भ को पाँच समवाय में घटित करते हुए जिनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग 2 पृष्ठ 618 में क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी लिखते हैं :
"काल को नियति में, कर्म व ईश्वर को निमित्त और दैव व क्रिया को भवितव्य में घटित कर लेने पर पाँच बातें रह जाती है। स्वभाव, निमित्त, नियति, पुरुषार्थ व भवितव्य-इन पाँच समवायों से समवेत ही कर्म-व्यवस्था की सिद्धि है, ऐसा प्रयोजन है । '
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उक्त दोनों उद्धरणों से स्पष्ट है कि नियति को काललब्धि का पर्यायवाची भी कहते हैं तथा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव अथवा पाँचों समवायों के सुमेल को भी नियति कहते हैं।
प्रश्न 15. पाँचों समवाय की मुख्यता से सम्यग्दर्शनरूप कार्य की उत्पत्ति के कारण बताइये?
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उत्तर :- किसी जीव
प्रत्येक समवाय की मुख्यता से निम्नानुसार होगा।
सम्यक्त्व की उत्पत्ति कैसे हुई ? इस प्रश्न का उत्तर
स्वभाव :- आत्मा के श्रद्धा गुण में सम्यग्दर्शनरूप परिणमन करने की शक्ति है, इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ ।
हुआ ।
पुरुषार्थ :- आत्मा के त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव की प्रतीतिरूप सम्यक् पुरुषार्थ करने से सम्यग्दर्शन हुआ।
काललब्धि :- सम्यग्दर्शन होने का स्वकाल आया इसलिए सम्यग्दर्शन
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